Book Title: Mukti ka Amar Rahi Jambukumar
Author(s): Rajendramuni, Lakshman Bhatnagar
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 226
________________ २१४ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार दी। इसके अनन्तर आर्य सुधर्मा स्वामी ने धारिणीदेवी, जम्बू. कुमार की आठो पत्नियो तथा उनकी माताओ को आर्या सुत्रता की आज्ञानुवर्तिनी बनाया। इन्हे आर्यश्री ने आदेश दिया कि आर्या सुव्रता के शुभ निर्देशन में वे साध्वी जीवन का निर्वाह करते हुए आत्मोत्थान मे लगी रहे। इसी प्रकार प्रभव एव उसके साथियो को जम्बू मुनि के सरक्षण मे रख दिया गया और उन्हे शिष्यवत् व्यवहार करने का आदेश दिया गया । दीक्षा प्रदान करने के पश्चात् आर्य सुधर्मा स्वामी ने नवदीक्षित श्रमण-श्रमणियो को उद्बोधन प्रदान किया। आर्यश्री ने कहा कि आयुष्मानो | तुम सभी ने जागतिक विषय, कषायादि के वन्धनो से स्वय को मुक्त कर लिया है और श्रमणधर्म मे दीक्षित होकर त्याग, साधनाप्रियता और सयम का परिचय दिया है । तुस्हारा यह आचरण अत्यन्त प्रशसनीय है । अब अपेक्षित यह है कि पूर्व साधु-आदर्शों का पालन करते हए अपने साधक जीवन को भी ऐसा आदर्श रूप दो कि जिसके अनुसरण से भावी पीढियो का कल्याण सम्भव हो । भव बन्धनो को चुनौती देकर एक सघर्ष तो तुमने जीत लिया है, किन्तु आगामी सघर्प भी बड़ा महत्वपूर्ण है । आने वाली चुनौतियो को सयम की शक्ति से पराभूत करना होगा। उत्तरोत्तर आत्मिक उत्थान मे व्यस्त रहकर अचल धर्य को अपना आश्रय मानना है, सफलता तुमको अवश्य प्राप्त होगी। तुमने जिस भव्य त्याग-भावना का परिचय दिया है वह युग-युगो तक श्रमण परम्परा को प्रेरणा देती रहेगी। इस अवसर

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