Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ ************************************* ********** ७१ मुखवस्त्रिका सिद्धि **************** (४) शास्त्रों के नाम से मुखवस्त्रिका हाथ में रखना, प्रमाण शून्य और प्रत्यक्ष झूठ है। (५) मुखवस्त्रिका बाँधने में थूक से असंख्य समूर्छिम जीवों की उत्पत्ति बताना भी शास्त्रीय अनभिज्ञता एवं मूर्खता है और साथ ही उत्सूत्र प्ररूपणा भी। (६) मुखवस्त्रिका केवल मुँह पर बाँधने के लिए है न कि शरीर प्रमार्जन के लिए। (७) खुले मुँह से बोली हुई भाषा सावध भाषा है। मुखवस्त्रिका मुँह पर नहीं बाँध कर हाथ में रखने वाले अधिकांश खुले मुँह बोलते हैं और मुखवस्त्रिका का दुरुपयोग करते हैं। (८) ऐतिहासिक प्रमाणों से भी मुखवस्त्रिका का मुँह पर बाँधना ही सिद्ध होता है। (8) जीवरक्षा और जैन साधु के लिंग के लिए (आवश्यक कार्यों के सिवाय) सदैव मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधना आवश्यक है। (१०) मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधने के विरुद्ध की गई शंकाएँ केवल कुतर्के ही हैं। सत्यांश का तो नाम मात्र भी नहीं है। इस प्रकार हम अपने इस छोटे से निबन्ध में मुखवस्त्रिका का मुँह पर बाँधना अनेक प्रबल एवं अकाट्य प्रमाणों द्वारा सिद्ध कर, उसके विरोध में उठाई हुई शंकाओं को निर्मूल कर चुके हैं। यदि हमारे प्रेमी पाठक इस छोटे से निबन्ध को कम से कम एक बार भी ध्यान पूर्वक शान्त चित्त से अवलोकन करेंगे, तो उन्हें यह अवश्य विश्वास होगा कि हमारे मूर्तिपूजक भाई और हमारी समाज से तिरस्कार पाये हुए ‘ज्ञानसुन्दरजी' जो हम पर आक्षेप एवं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104