Book Title: Mrutyu ki Dastak
Author(s): Baidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
Publisher: D K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
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________________ 144 . मृत्यु की दस्तक लेकिन स्त्री में दोनों ही स्त्री गुण समूह XX होते हैं। संभवतः प्रकृति ने बड़े ही सोच-विचार के बाद ऐसी व्यवस्था की है ताकि जीवन का पालन-पोषण और सबसे अधिक निर्माण कार्य स्त्री के माध्यम से ही हो सकता है। चार लिंग निर्माण की संभावनाओं में से तीन होते हैं स्त्री अंग के गुण और केवल एक होता है पुरुष अंग का गुण (xx +XY) / प्रश्न यह है कि स्त्री-पुरुष (माता-पिता) के गुणसूत्र शिशु में 46 + 46 = 92 हो जाने चाहिये और हर बार दोगुने होते जाने चाहिए, पर ऐसा होता तो नहीं। कैसे? होता ऐसा है कि विभाजन द्वारा पुरुष में शुक्राणु दो तरह के बन जाते हैं A+ X वाले और A+ Y वाले। नारी समयुग्मिकी होती है। इसमें अंड जनन द्वारा केवल एक ही प्रकार के गुण (A+x) वाले रज अण्ड बनते हैं। युग्मनज बनते समय यदि पुरुष के (A + X) और स्त्री के भी (A + X) मिल जायें तो 2A + x + X के कारण कन्या पैदा होगी और यदि पुरुष के (A + Y) और स्त्री के (A + x) मिल जायें तो 2A +X+ Y गुणसूत्र होने के कारण बच्चा पुरुष होगा। अतः पुरुष का Y गुण ही बच्चे का लिंग निर्धारण करता है। पुरुष स्त्री में (x : Y :: 1 : 1) फिर भी प्रकृति में, मानव समाज में पुत्री : पुत्र = 100 : 104 (लगभग) का अनुपात होता है। कारण यह है कि Y वाले शुक्राणु हल्के होते हैं। अतः निषेचन में अधिक आसानी से सफल हो जाते हैं। बच्ची पैदा होगी यदि दो x आ जाएं, ये दोनों x केवल माता से ही मिलें या एक पुरुष के Y वाले के साथ का X हो। , इस प्रकार माता-पिता का पुनर्जन्म बच्चे-बच्चियों के रूप में होता रहता है। हर बच्चा ही माता-पिता का पुनर्जन्म है। माता-पिता का उद्देश्य (पुत्री-पुत्र के रूप में पुनर्जन्म लेकर जीते रहने की प्रक्रिया) पूरा हो जाता है। बाद में माता-पिता भले ही मर जायें और जला दिये या गाड़ दिये जायें कोई अन्तर नहीं पड़ता। माता-पिता तो जीते ही रहते हैं (संतान के रूप में)। मौत उन्हें मिटा नहीं सकती। हाँ; धोखा तभी होगा जबकि माता-पिता को पुनर्जन्म द्वारा संतान ही न हो, संभवतः इसीलिए सन्तान न होना प्रकृति और समाज द्वारा गर्हित, दूषित और निन्दित माना जाता है। इसके द्वारा आधी या पूरी वंशावली ही समाप्त हो जाती है। एक या दो प्राणियों की आदि काल से संचित गुणावगुणों की कमाई बरबाद हो जाती है। कर्मवाद और जन्मान्तरवाद एक-दूसरे के परिपूरक होते हैं, इस सत्य में व्यवधान सा पड़ जाता है। कर्मवाद की श्रृंखला ही टूटकर बिखर जाती है। ___ जननिक एवं आनुवांशिक विद्याएँ आज जो सिद्ध करती जा रही हैं वे तथ्य शताब्दियों से युक्तिसंगत और व्यापक रूप से पूर्वी देशों में तो मान्य रहे ही हैं। हाँ, आज प्राणी-विज्ञान की प्रयोगसिद्ध और प्रमाणपुष्ट खोजों की दृष्टि से यह और भी अधिक स्पष्ट और रुचिकर हो गया है। चाहे जिस दृष्टि से सोचे पुनर्जन्म का आधार कर्मफल सिद्धान्त ही है। हमारा वर्तमान जन्म पिछले तमाम जन्मों के कर्मों का विपाक ही तो है। अगले जन्म का आधार वर्तमान एवं पिछले जीवनों में किये गये शुभाशुभ कर्मसमूह ही तो होगा। यदि कर्म पर