Book Title: Mrutyu Ki Mangal Yatra
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 4
________________ प्रकाशक की कलम से..... परम पूज्य परमाराध्यपाद वात्सल्यनिधि करुणावतार गुरुदेव पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री के चरम शिष्यरत्न मुनिप्रवर श्री रत्नमेन विजयजी म. द्वारा पालेखित 'मृत्यु की मंगल यात्रा' पुस्तक का प्रकाशन करते हुए हमें प्रत्यन्त ही हर्ष हो रहा है । किसी पूर्वाचार्य महर्षि की यह सूक्ति याद आ जाती है-'मरणं मंगलं यस्य, सफलं जीवनं तस्य'। जिसकी मृत्यु मंगल रूप है, उसका जीवन सफल है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जीवन की सफलता का अाधार मृत्यु की मंगलता पर रहा हुआ है । __मृत्यु को मंगलरूप/महोत्सवरूप बनाने के लिए जीवन को समाधिमय बनाना अनिवार्य है। जीवन को समाधिमय बनाना सबसे बड़ी साधना है । जीवन में आने वाले कर्मजन्य सुख-दुःख, अनुकलता-प्रतिकूलता और उतार-चढ़ाव के बीच जो मध्यस्थ तटस्थ रहना सीख लेता है, वह मृत्यु की असीम वेदना में भी समाधि भाव प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत कृति में मृत्यु को मंगलरूप बनाने के सुन्दर उपाय बतलाए हैं। लेख, निबन्ध, कथा, वार्ता, बातचीत, विवेचन आदि के साथ-साथ पत्र-पालेखन के द्वारा भी पाठकों को सन्मार्ग दर्शन दिया जा सकता है। प्रस्तुत कृति में लेखक द्वारा लिखे गए १९ पत्रों का सुन्दर संकलन प्रस्तुत किया गया है। इस पत्र-शैली के अन्तर्गत ही लेखक की एक अन्य रचना "जीवन की मंगल यात्रा'' को भी निकट भविष्य में प्रकाशित करने की भावना है। लेखक की अन्य कृतियों की भाँति प्रस्तुत कृति भी पाठकों के जीवननिर्माण में अवश्य योग देने वाली सिद्ध होगी, इसी आशा और विश्वास के साथ -प्रकाशक ( 3 . ) -

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