Book Title: Mokshmarg Ek Adhyayan
Author(s): Rajesh Jain
Publisher: Rajesh Jain

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Page 17
________________ प्रभावना अंग अनायतन के छः भेद कहे गये हैं। कुगुरु । कुदेव । कुधर्म | कुगुरु उपासक | कुदेव उपासक | कुधर्म उपासक अंग के आठ भेद कहे गये हैं। निःशंकित निकांक्षित निर्विचिकित्सा अमूढदृष्टि | उपगूहन स्थितिकरण वात्स | अंग | अंग | अंग | अंग | अंग ल्य अंग | अंग निःशंकित अंग:- मोक्ष मार्ग मे संशय रहित रूचि का होना निःशंकित अंग है। निकांक्षितअंग:- संसारिक सुखों मे कांक्षा नही करना निकांक्षित अंग है। निर्विचिकित्साअंग:- रत्नत्रय से युक्त मुनि के मलिन शरीर को देखकर ग्लानि नही करना और उनके गुणों मे प्रीति करना निर्विचिकित्साअंग है। अमूढदृष्टिअंग:- मिथ्यादृष्टि मानव को मन शरीर और वचन से सहमति न देना, सराहना अथवा प्रशंसा न करना अमूढदृष्टिअंग है। उपगूहनअंग:- मूढ अज्ञानी या असमर्थजनो के निमित से हुऐ दोषों को ढक देना उपगूहनअंग है। |स्थितिकरणअंग:- सम्यग्दर्शन या सम्यकचारित्र से च्युत हो रहे मानव को फिर से धर्म प्रेम वश उसी मे स्थिर कर देना स्थितिकरणअंग है। वात्सल्यअंग:- सहधर्मीजनों के प्रति हमेशा छल कपट रहित तथा सद्भावना एंव विनयपूर्वक व्यवहार करना वात्सल्यअंग है। प्रभावनाअंग:- अज्ञान अंघकार को दूर कर अपने जैन धर्म के माहात्मय का प्रकाश फैलाना प्रभावनाअंग है। K.17

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