Book Title: Mohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Author(s): Mrugendramuni
Publisher: Mohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्य
ન દાર્શનિક સાહિત્ય ઔર પ્રમાણવિનિશ્ચય
तिब्बती भाषानुवादों का परिचय बौद्ध संस्कृत ग्रन्थों के तिब्बती भाषनुवादों का प्रारंभ तिब्बती में इसवीय सातवी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ और यह कार्य सेंकडों वर्षों तक पीछे भी चालू रहा. इस के फल स्वरूप सेंकडों बौद्ध संस्कृत ग्रन्थों के तिब्बती भाषा में अनुवाद तैयार हुए. भारत से गये हुए पंडित और तिब्बत के पंडित ये दोनों मिलकर संस्कृत प्रन्थों के तिब्बती भाषा में अनुवाद करते थे. इस से एक-दुसरे के भाषाज्ञान में जो अपूर्णता हो उसे दूर करने का सुंदर प्रयत्न करने में आता था १५ वी शताब्दी के प्रारम्भ में एक महा विद्वान बौद्ध साधुने इन सभी भाषानुवादों का संग्रह कर के दो विभागों में उन का व्यवस्थित वर्गीकरण किया. एक विभाग का नाम कंजूर रक्खा गया और दुसरे का नाम तंजूर. बौद्ध सूत्र ग्रन्थों के तिब्बती भाषानुवाद कंजूर में समाविष्ट किये गये और न्याय, व्याकरण, काव्य, कोश. विधि, मन्त्र, तन्त्र, योग, छंद, वैद्यक आदि विविध विषयक छोटे-बडे सेंकडों ग्रन्थों का तिब्बती भाषानुवाद तंजूर विभाग में रक्खा गया. और बडी बडी पोथीयां कर इनमें ये सब ग्रन्थ रक्खे गये. और सुविधा के लिये प्रत्येक पोथी को क्रमशः अलग अलग नंबर दिया गया. जिस ग्रन्थ की आवश्यकता हो वह प्रन्थ जिस नंबर की पोथी में रखा गया हो उस नंबर को लिस्ट में खोजकर उस नंबर की पोथीमें से तूर्त ही वह ग्रन्थ मिल सकता है. एकेक पोथी में करीब करीब साडे तीनसो या चारसो पान रहते हैं. बहुत ही बडा अन्य हो तो उसको दो दो पोथीओ में विमत किया गया है और छोटे छोटे अन्य होती एक 'पोयी में अनेक ग्रन्थों का भी संग्रह किया गया है.
कुछ वर्षों के बाद, इन हस्तलिखित पोथीयों पर से लकडे के फलकों पर अक्षरों को खोद कर एक प्रकार के ब्लोक बनाकर इन प्रन्थों कागज पर छापने का प्रारंभ हुआ. जो Xylograph कहा जाता है. ऐसे लकडे के ब्लोक अनेक भिन्न भिन्न स्थानों में बनाये गये इन में १ छोनी, २ पेकींग, ३ देगें, ४ स्नर् थक्, और ५ ल्हासा ये मुख्य स्थान है.
और वहां छपे हुए ग्रंथ उन स्थानों के नाम से पहिचाने जाते है. जैसे-छोनी एडीशन; पेकींग एडीशन इत्यादि. इन में ल्हासा एडीशन में तंजूर विभाग नहीं है. छोनी एडीशन, पेकींग एडीशन और देगें एडीशन के ग्रंथ कुछ कुछ स्थानों में ही मिलते हैं इस से वे दुर्लभ है.. स्नर था एडीशन के प्रन्थ ही विपुलतया सर्वत्र पाये जाते हैं. इन तिब्बती ग्रन्थों के पत्ते की लंबाई चौडाई करीब करीब "२४४६" इंच रहती है. दोनो बाजू में छपा हुआ रहेता है और प्रत्येक बाजू में सात सात पंक्तियाँ होती हैं
- यहां हमने प्रमाणविनिश्चय के जिस तिब्बती भाषानुवाद का उपयोग किया है वह स्तर् थङ् एडीशन का है. तंजूर के मदो विभाग में ९५ नंबर की पोथी में पृ० २५९३ से पृ० ३४८ a तक यह ग्रंथ है इस के तीन परिच्छेद है-१ प्रत्यक्ष, २ स्वार्थानुमान और ३ परार्थानुमान. १ ला परिच्छेद पृ० २५९ A से पृ० २७६ A तक है. २ रा परिच्छेद पृ० २७६ A से पृ० २९९ A तक है. ३ रा परिच्छेद पृ० २९९ A से पृ० ३४८ A पर्यन्त है. मूल प्रन्थ कारिकात्मक है और उस पर गद्य में वृत्ति है. कारिका और वृत्ति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org