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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
काही चित्र नहीं आता, अपितु उससे जो किरणें निकल रही हैं उनका भी चित्र आ जाता है । इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि यदि व्यक्ति निषेधात्मक विचारों से भरा है तो उसके हाथ के पास जो विद्युत परमाणु है उसका चित्र अस्वस्थ, रुग्ण और अराजक होता है । वह ऐसी लगता है मानो किसी बच्चे या पागल आदमी द्वारा खींची गई कोई टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें हों । यदि व्यक्ति शुभ या पवित्र भावनाओं से भरा है तो उसके हाथ के आस-पास जो विद्युत परमाणु है उनका चित्र लयबद्ध, सुन्दर और सानुपातिक होता है । किरलियान ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि बहुत शीघ्र ही वह समय आने वाला है जब किसी के बीमार होने से पहले ही हम यह बताने में समर्थ हो जायेंगे कि वह बीमार होने वाला है । शरीर पर बीमारी उतरने से पहले उसके विद्युत वर्तुल पर बीमारी उतर आती है। इससे पहले कि व्यक्ति की मृत्यु हो उसका विद्युत वर्तुल सिकुड़ना शुरू हो जाता है। यहां तक कि कोई आदमी किसी की हत्या करे, उसके पहले ही उस विद्युत वर्तुल में हत्या के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं ।
प्रत्येक मनुष्य के इर्दगिर्द एक आभामण्डल होता है । मनुष्य अकेला ही नहीं चलता। उसके इर्दगिंद एक विद्युत वर्तुल (इलेक्टो डायनैमिक फील्ड) भी चलता है। रूसी वैज्ञानिकों का कहना है कि जीव और अजीव में एक ही फर्क किया जा सकता है कि जिसके आस-पास आभामण्डल है वह जीवित है और जिसके पास आभामंडल नहीं है वह मृत है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मृत्यु के बाद आभामंडल को विसर्जित होने में तीन दिन लगते हैं । जब तक आभामंडल सुरक्षित है तब तक व्यक्ति सूक्ष्म तल पर जीवित होता है
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महावीर या अन्य आप्त पुरुषों के प्रतीक के साथ आभामंडल निर्मित किया जाता है । यह सिर्फ कल्पना नहीं है, एक वास्तविकता है। वास्तव में ही उनके आस-पास एक आभामंडल होता है। अब तक तो इस आभामंडल को वे ही जान सकते थे जिन्हें गहरी और सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त थी किन्तु सन १९३० में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने एक ऐसी रासायनिक प्रक्रिया निर्मित कर दी जिससे प्रत्येक व्यक्ति उस यंत्र के माध्यम से दूसरे के आभामंडल को देख सकता है ।
जिस प्रकार व्यक्ति के अंगूठे की छाप अपनी निजी होती है उसी प्रकार आभामंडल भी अपना निजी होता है। आभामंडल उन सारी बातों को बता देता है जो
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