Book Title: Mohanlal Banthiya Smruti Granth
Author(s): Kewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 15
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ डी. एन. दासगुप्ता, श्री मानव मुनि, श्री एस. जगदीश देशमुख, श्री अगरचन्द नाहटा, डा. सत्यरंजन बनर्जी, श्री छगनलाल शास्त्री, श्री श्रीचन्द रामपुरिया, मुनिश्री बुद्धमलजी ने शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की तथा आचार्यश्री ने प्रवचन में धार्मिक शिक्षा को मनोवैज्ञानिक संस्कार सम्पन्न व सुरुचिपूर्ण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। बीदासर में दक्षिणांचल की निर्विघ्न यात्रा व उसकी उपलब्धियों के उपलक्ष में समूचे समाज द्वारा आचार्य प्रवर को 'युग प्रधान' की उपाधि से विभूषित किया गया। यह आयोजन महासभा के अन्तर्गत संचालित हुआ, जिसे महासभा के इतिहास में स्वर्णिम कहा जा सकेगा। इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष श्री मोहनलाल बांठिया, महामंत्री श्री केवलचन्द नाहटा व रायपुर में अग्नि परीक्षा प्रकरण में सहयोगी श्री शुभकरण दस्सानी ने भी अपना भावभीना अभिनन्दन व्यक्त किया। परमाराध्य गुरुदेव को युगप्रधान की उपाधि से विभूषित किए जाने पर भारत के माननीय राष्ट्रपति ने भी बधाई दी। रायपुर चातुर्मास में सेवाभावी श्री चम्पालालजी का मार्ग-दर्शन महत्वपूर्ण रहा। ___ परमाराध्य गुरुदेव की दृष्टि को स्वः बांठियाजी सर्वोपरि एवं अपने जीवन का अनिवार्य अंग मानते। महासभा द्वारा आगम प्रकाशन का कार्य शुरू किया गया। महादेव राम कुमार टष्ट की ओर से आगम प्रकाशन कार्य का दायित्व स्व. बांठियाजी को दिया गया। उन्होंने आगम प्रकाशन के कई फर्मे तैयार भी किये, पर गुरूदेव द्वारा निर्देश आया कि आगम प्रकाशन का कार्य किसी अन्य विद्वान को सौंप दिया जाये ताकि सम्पर्क की दृष्टि से केन्द्र के लिए सुविधाजनक रह सके। श्री पन्नालाल सरावगी नहीं चाहते थे कि व्यवस्था में बदलाव लाया जाये। वे आचार्यप्रवर को पुनर्विचार के लिए लिखना चाहते थे, पर श्री बांठियाजी ने कहा कि अब जो भी विचार आप प्रगट करेंगे मेरे माने जायेंगे सो उन्होने उस निर्देश को प्रसन्नता के साथ स्वीकार कर सम्पादन का काम अविलम्ब अन्य विद्वान को सौंप दिया। विद्वान भी चाहते थे कि श्री बांठियाजी ही काम देखें, पर गुरूदृष्टि को आराध्य मानकर उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया व उन्हे कार्य सौंप दिया और उन्हें सहयोग देते रहे। इस प्रकार अनेक विभिन्न अवसर आए। सभी अवसरों पर उन्होंने गुरूदृष्टि का सदैव सांगोपांग पालन किया। __ संस्थाओं की कार्य प्रणाली सजगता व कुशलता से चलाते। रायपुर में सरकारी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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