Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 209
________________ (१८२) " श्वाविध शल्य गोधां, खड्गकूर्मशशास्तथा । भक्ष्यान् पंचनखेष्वाहु-रनुष्ट्रां श्चैकतोदतः ॥ १८ ॥" भावार्थ- श्वाविध ( सेह ) शल्य सेहकी तुल्य बडे बडे रोमवाला गोधा गेंडा कच्छप और शशा पंच नखोंमें ये पांच, और उंटको छोड कर एक ओर ( तरफ) दांतवाले भक्षणके योग्य मनुजीने कहे हैं !! १८ ॥ __इस उपरके लेखसे मनुस्मृतिको धर्मशास्त्र और उसके कत्ताको धार्मिक मनुष्य कहना पापको पुण्य मानने जैसा है. क्यों कि, जो शास्त्र इन उपरोक्त पंच नखवाले तथा एक तरफ दंतवाले जानवरोंको खाने लायक बतलावे, उससे ज्यादह और पापशास्त्र क्या होगा?. तथा ऐसे शास्त्रके रचनेवालेसे और ज्यादह अधर्मी किसे कह सकते हैं ? ; सो बात अच्छी तरहसे समझमें आवे ऐसी है. नीचेका उल्लेख भी इसी बातको सिद्ध करता है. " यज्ञार्थ ब्राह्मणैर्वध्याः, प्रशस्ता मृगपक्षिणः । भृत्यानां चैव वृत्त्यर्थ-मगस्त्यो ह्यचरत् पुरा ॥ २२ ॥ बभूवुर्हि पुरोडासा, भक्ष्याणां मृगपक्षिणाम् । पुराणेष्वपि यज्ञेषु, ब्रह्मक्षत्रसवेषु च ॥ २३ ॥" दश मासांस्तु तृप्यन्ति, वराहमहिषामिषैः । शशकूर्मयोस्तु मांसेन, मासानेकादशैव तु ॥२७० ॥ संवत्सरं तु गव्येन, पयसा पायसेन च । वार्कीणसस्य मांसेन, तृप्तिादशवार्षिकी ॥२७१ ॥ कालशाकं महाशल्का-खड्गलोहामिषं मधु । आनन्त्ययैव कल्प्यन्ते, मुन्यन्नानि च सर्वशः ॥ २७२ ॥ "

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