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महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) लर स्कूल और ६ मालानी प्रान्त के वर्नाक्यूलर स्कूल खोले जा चुके थे । इनमें करीब १५५० लड़के विना किसी प्रकार की 'फीस' ( शुल्क ) के शिक्षा पाते थे और कुछ विद्यार्थियों को राज्य की तरफ़ से वज़ीफे ( वृत्तियां ) भी मिलते थे । इनके अलावा टेलिग्राफ़ का काम सिखलाने के लिये एक अलग क्लास ( कक्षा ) खोली गई थी।
आवागमन के लिये रेल्वे और सिंचाई के लिये जसवन्तसागर आदि बड़े-बड़े बांधों के बन जाने, तथा हवाला आदि आय के महकमों के प्रबन्ध में उन्नति हो जाने से राज्य की आय भी उत्तरोत्तर बढ़ने लगी थी । वि० सं० १९५२ (ई० स० १८९५१६) की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि उस वर्ष, साधारण तौर पर बारिश कम होने पर भी, ५७,१०,७२५ रुपयों की आय हुई थी, जो राज्य के साधारण व्यय से ६ लाख के करीब अधिक थी । न्याय के लिये कानून बन जाने और अदालतों के प्रबंध में सुधार हो जाने से मारवाड़ की २५,२६,२६३ प्रजा को न्याय-प्राप्त करने में सुभीता हो गया था; और न्यायालयों को एक स्थान पर स्थापित करने के लिये नई 'जुबली कोर्ट' ( कचहरी ) बनवाई गई थी।
महाराज को कला-कौशल, कविता और व्यायाम का भी शौक था । इसीसे दूरदूर के कलाविद् और कवि अपनी-अपनी कृतियां लेकर महाराज की सेवा में उपस्थित होते और यथोचित-पुरस्कार प्राप्त करते थे। इसी प्रकार पहलवानों का एक दल भी राज्य से वेतन पाता था।
इन्हीं महाराज के समय राज्य-कवि बारहठ मुरारिदान ने 'यशवन्त यशोभूषण' नामक अलङ्कार के ग्रन्थ की रचना की थी और महाराजा ने उसे कविराजा की उपाधि के साथ ही 'लाख पसाव' दिया था।
१. इस समय रेल्वे की आय १०,२०,६७२ रुपये की और व्यय ३,७०,८६१ रुपये का था। २. यह बांध वि० सं० १९४६ ( ई० स० १८६२ ) में ५,४५,८१५ रुपये की लागत से
तैयार हुआ था। ३. इस ग्रन्थ में अलङ्कारों के नाम से ही उनके लक्षण सिद्ध किए हैं, और उदाहरणों में
से प्रत्येक प्रथम-उदाहरण में महाराजा जसवन्तसिंहजी का यशोवर्णन किया है । इसके हिन्दी और संस्कृत के दो-दो संस्करण (विशाल और संक्षिप्त) राज्य की तरफ से प्रकाशित हुए थे और उपर्युक्त 'लाख पसाव' की आज्ञा वि० सं० १६५० की फागुन वदि १४ (ई० स० १८६४ की ६ मार्च) को दी गई थी।
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