Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ४] मन्त्रकल्प संग्रह कमा मन्त्राधिराजजिनभर्तुरमर्त्यनागे किं माद्यतीह न गजाः प्रमदा भवन्ति ।।१८।। इति प्रस्तावना दाता जितेन्द्रिय चयोऽथ निरामयश्चा sमायो दया हृदयो विनयावनम्रः। . . स्नातः प्रशस्तदिवसे सितधौतवस्त्रः, शिष्यो गहीतफलपुष्पसमृद्धगन्धः ।।१६।। संपूज्य पार्श्व जिनबिम्बमुपोष्य कृत्वा, . वाचाम्लमुत्तमतपः पवनेऽब्जचारे। . सज्ज्ञानचन्द्रधवलीकृतविश्वविश्वं, ब्रह्मव्रतस्थिरतरं गुरुमित्थमाह ॥२०॥ (युग्मम्) कृत्वा प्रसादमसमं मयि पादलग्ने, मग्ने जडत्वजलधौ यदि योग्यताऽस्ति। . मन्त्राधिराज वरयन्त्रयुतं तु मन्त्र, . पात्रे निधेहि भगवन् करुणां विधेहि ।।२१॥ यज्जानुनाभिमुखमस्तकमस्य पञ्च तत्त्वाक्षरैस्तु सकलीकरणं विधाय। अभ्यचिते श्रवसि मन्त्रमथ त्रिवारं .. पाणौ क्षिपेद्गुरुरमुष्य सुवर्णमम्भः ।।२२॥ क्षेत्र सुबीजमिव मे भवतां प्रसादान् मन्त्रः प्रभो सफलतां कलयत्वमोघः । इत्थं वदन्नमति पादयुगं गुरुणां, शिष्यो यतो भवति कार्यकरः प्रणामः ।।२३।। इति प्रस्तावनाप्रदानविधिर्नाम प्रथमः पटलः ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 184