Book Title: Mantra Yantra aur Tantra
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 60
________________ मंत्र अधिकार मंत्र यंत्र और तंत्र मुनि प्रार्थना सागर 42. बल्कि आँखों को लगाकर पुनः जाप प्रारम्भ करें। खंडित माला से जाप न करें। आसन विधान बांस की आसन से दरिद्रा, पाषाण से रोगी, भूमि पर करने से दु:ख, लकड़ी की आसन से दुर्भाग्य, घास की आसन से यश हानि, पत्रों की आसन से भ्रान्ति, वस्त्र पर बैठकर करने से मन चंचल, चमड़ा के आसन से ज्ञान नाश, कंबल के आसन से मान भंग। अतएव डाब की आसन सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए डाब की आसन पर बैठकर जाप करना चाहिये। यही प्रशंसनीय माना जाता है।(विद्यानुवाद -५४०) तृण, घास के आसन पर बैठकर जाप पूजा करने से यश की हानि होती है,नीले रंग के वस्त्र से अधिक दुःख भोगना पड़ता है, हरे वस्त्र के आसन पर सदा मान भंग होता है, सफेद वस्त्र पर बैठकर करने से यश वृद्धि होती है, हल्दी के रंग वाले वस्त्र के आसन से हर्ष की वृद्धि होती है, लाल वस्त्र के आसन पर कार्यों की सिद्धि होती है; किन्तु सर्वश्रेष्ठ डाब का आसन है। (धर्मरीसका नामक ग्रन्थ एवं चर्चासागर पृ. २८)। 43. हवन विधिसकलीकरण से शुद्धि, यज्ञोपवीत तथा मंत्रस्नान करके पर्यंकासन से हवन करें। होम (हवन) कुण्ड :होम कुण्ड तीन प्रकार के होते हैं- १.त्रिकोण-यह कुण्ड मारण, आकर्षण और वशीकरण के काम आता है। २. गोलकुण्ड- यह विद्वेषण व उच्चाटन इन दो कर्मों में काम आता है। ३. चौकोर - यह शान्ति, पौष्टिक और स्तंभन कर्म में काम आता है। 44. धूप विचार- मुख्यतः अगर, तगर, देवदारु, छरीला, गूगल, लौंग, लोबान, कपूर, चंदन, कस्तूरी, खस, नागरमोथा से धूप बनायी जाती है। 45. जाप-होम-मंत्र-जाप के समय मंत्र के अन्त में नमः शब्द लगावे और होम के समय "स्वाहा' शब्द जोड़े। मूल मंत्र की संख्या से दसवाँ भाग होम की आहुतियाँ अवश्य दें। समिधाएं- सामान्य रूप से हवन के लिए पलाश (ढाक) की लकड़ी मुख्य मानी गई है। इसलिए यही समिधाएं ली जाती हैं, और उसके अभाव में दूध वाले वृक्षों की समिधाएं ली जाती हैं। लेकिन क्षुद्र कर्मों मारणादि में बहेड़े, नीम, धतूरे आदि की समिधाएं लेना चाहिए। विशेष- शान्ति और पौष्टिक कर्म में लाल कनेर के पुष्पों से हवन करें। क्षोभ कर्म में गूगल, कमलगट्टे आदि से होम किया जाता है। वशीकरण के लिए सुपारी के फल तथा पत्तों से हवन किया जाता है। योगी वशी के लिए चमेली फूलों से तथा धन-धान्य आदि - 60

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