________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३..) उस (पुरुष) का प्राकार मरी वीक्ष्ण-शक्ति के सिवाय और कुछ नहीं और यह शक्ति मेरे मन की ही क्रिया है। विविध पदार्थों को मन के द्वारा ही देखा (अनुभव किया) जा सकता है । जहाँ विषय-पदार्थ हम पर अपना प्रभाव डालते हैं वहाँ मन की सत्ता का अनुभव होता है।
यथा स्वप्नमयो जीवो जायते म्रियते पि च । तथा जीवा अमी सर्वे भवन्ति न भवन्ति च ॥६॥ यथा मायामयो जीवो जायते म्रियतेऽपि च । तथा जीवा अमी सर्वे भवन्ति न भवन्ति च ॥६६॥ यथा निर्मितको जीवो जायते म्रियतेऽपि च ।
तथा जीवा अमी सर्वे भवन्ति न भवन्ति च ॥७॥ जिस तरह स्वप्न-जीव प्रकट तथा लुप्त होता है उसी तरह सभी जीवात्मा जाग्रतावस्था में दृश्य और अदृश्य होते प्रतीत होते हैं।
जिस प्रकार माया पदार्थ (जादू से) दिखायी देते तथा लुप्त होते हैं उसी प्रकार जाग्रताबस्था के सभी जीवात्मा प्रकट तथा लुप्त होते रहते हैं।
जैसे सभी निर्मित जीव जन्म लेते और मृत्यु को प्राप्त होते हैं वैसे ही जाग्रतावस्था में देखे जाने वाले सभी जीवात्मा दृष्टिगोचर होते रहते हैं।
ऊपर दिये गये तीन मन्त्रों में श्री गौड़पाद यह बताने का प्रयत्न कर रहे हैं कि 'परिवर्तन की लय' और 'जन्म-मरण का खेला जा रहा मिथ्या नाटक' किम तरह घटित होता रहता है। स्वप्न, मायाजाल तथा जाग्रतअवस्थानों में पदार्थ समान रूप से प्रकट तथा लुप्त होते रहते हैं । इन तीन मन्त्रों को यहाँ इस कारण दिया गया है कि जिन दो स्थितियों में हम मिथ्यात्व को स्वीकार करते हैं उनमें जाग्रतावस्था को भी शामिल करना चाहिए क्योंकि इससे सम्बन्धित जीव, पदार्थ आदि भी वास्तविकता से इतर होते हैं।
For Private and Personal Use Only