Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 532
________________ लोग पूछते प्रमाण के निमित्त स्सोई बना कर उन्हें जिमाना चाहिए खा नहीं ? तब दूसरे-कहते जो मत्स्य मांस तक को नहीं छोड़ते उनको देने से क्या पुण्य होता होगा, इत्यादि एक दूसरे के विरोध में पूछी जाने वाली बातें सुनकर भगवान महावीर अपना सिद्धान्त रुपत करते हुए उनके प्रश्नों का उत्तर देते थे। जिसका संक्षिप्त निरूपण नीचे मुजब सूत्रकृताङ्ग" सूत्र में मिलता है भूबाईल समारम्भ, न दिसाय जं कडं। तारिसोतु न मिसहेजा, अमपाणं सुसंजए ॥१४॥ पूड कम्मं न सेविज्जा, एस धम्मे सीम ओ। घं किञ्चि अभिकं खेज्मा, सव्यसो तं नःकप्पए ॥१५॥ हणंत णाणुजाणेज्जा, पायगुने जिई दिए। ठाणाइ 'संति सहीणं, गामेसु नगरे सु वा ॥१६॥ तहागिरं समारब्म, अस्थि पुरणंति णो वए । अहवा पंथि पुगणंति, एवमेयं महब्भयं ॥१७॥ दाणट्ठयाय ये पाणा, हम्मति तस थावरा । तेसि सारक्खणडाए, तम्हा अथिति णो ये ॥१८॥ जेसि तं उवकप्पति, अभपाणं तहा विहं । सिं लाभं रायति, तम्हा णस्थिति णो वये ॥१६॥ जेय दारणं प्रसं संति, बहमिच्छति : पाणिणं । ने ससं पहिलेइंति, विनिच्छेयं करंति ते. ॥२०॥

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