Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
४४१ अनुपस्थिति हो। वास्तव में कवि महान् उपदेशक थे। अतः उनकी रचनाओं में सूक्त। सुभाषितों का बाहुल्य होना स्वाभाविक है। २. कहावतें तथा मुहावरे
__कहावतें तथा मुहावरे काव्य के ही अंग हैं। कहावत उस बन्धी हुई लोकप्रचलित उक्ति को कहते हैं, जिसमें किसी तथ्य या अनुभूत सत्य का चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रतिपादन या प्रस्थापन किया गया हो; और मुहावरा उस वाक्य या वाक्यांश को कहते हैं, जो अभिधार्थ से भिन्न किसी और अर्थ में रूढ़ हो गया हो। काव्य में इनके प्रयोग से उसकी भाषा में प्रौढ़ता आती है तथा उसकी अभिव्यंजना शक्ति बढ़ जाती है। शब्दों का चमत्कार एवं अर्थ-गाम्भीर्य प्रकट करने में भी इनका प्रयोग विशेष सहायक होता है। वस्तुतः कहावतें युगों का सद्ज्ञान है (र्जम कहावत) और मुहावरे किसी भी सजीव भाषा के प्राण होते हैं (भारतीय कहावत)। वास्तव में कहावतें तथा मुहावरे लक्षणा एवं व्यंजना द्वारा भाषा के अर्थ-गौरव के विस्तारक होते हैं।
कवि समयसुन्दर के साहित्य के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि उसमें अनेक कहावतें तथा मुहावरे प्रयुक्त हुए हैं। सचमुच, इन दोनों के प्रयोग से उनकी रचनाओं के अर्थ-गौरव का विस्तार हुआ है, प्रेषणीयता तथा प्रभावोत्पादकता बढ़ी है। यहाँ हम समयसुन्दर द्वारा प्रयुक्त कहावतों एवं मुहावरों पर क्रमशः विचार कर रहे हैं। २.१ कहावतें
समयसुन्दर ने जिन कहावतों को प्रयुक्त किया है, उनमें से कतिपय कहावतें उदाहरणार्थ नीचे दी जा रही हैं - २.१.१ आपणी करणी पार उतरणी' २.१.२ आप डूबे सारी डूब गई दुनियां २.१.३ आप आपणइ मत थापयइ सगला। २.१.४ आप मुयां विण सरग न जइयई। २.१.५ आप बखाणइं पर नइ निंदइ। २.१.६ इहां बाघ इहां तौ कूऔ। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जीव प्रतिबोध गीतम् (८); वही, प्रस्ताव सवैया
छत्तीसी (१,३३); सीताराम-चौपाई (३.४.६) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, निद्रा गीतम् (३) ३. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१२) ४. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१९) ५. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (३१) ६. चम्पकश्रेष्ठि-चौपाई (१.१२.१५)
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