Book Title: Mahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Amrutrasashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust
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________________ निष्कर्ष यह है कि कदाग्रह का विमोचन और वस्तु का सम्यक् बोध नय फल है और उससे सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, पुष्ट होता है और मुक्तिमार्ग की ओर प्रगति बढ़ती है। संक्षेप में नयवाद के भेदों को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से भी बताया जाता है (1) नय द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढ़ एवंभूत शब्द समभिरूढ़ एवंभूत सूक्ष्म स्थूल (क्षणिक पर्याय) (मनुष्यादि पर्याय) (2) नयर . निश्चयनयश व्यवहारनय74 सद्भूत असद्भूत शुद्ध (केवलज्ञानी) अशुद्ध (छद्मस्थ) अनुपचरित (शुद्ध) उपचरित (अशुद्ध) अनुपचरित (संश्लेषित) उपचरित (असंश्लेषित) सोपाधिक निरूपाधिक नय76 ___व्यार्थिकण द्रव्यार्थिका पर्यायार्थिक पर्यायार्थिक अनादित्य सादिनित्य सदनित्य नित्योऽशुद्ध नित्यशुद्ध अशुद्धनित्य शुद्ध द्रव्यार्थिक कर्मोप्राधि रहित शुद्धद्रव्यार्थिक भेदकल्पनारहित (नित्यतावाद) अशुद्ध द्रव्यार्थिक कर्मोप्राधि कारण अन्यद्रव्यार्थिक | भेद कल्पना ग्रहण करने से परद्रव्यादि ग्राही द्रव्यार्थिक नय शुद्ध अशुद्ध अशुद्ध स्वद्रव्यादि परमभाष द्रव्यार्थिक द्रव्यार्थिक द्रव्यार्थिक गुणपर्याययुक्त ग्राही उत्पाद व्यय द्रव्य को एक द्रव्यार्थिक सापेक्ष मानने से नय इस प्रकार भिन्न-भिन्न रीति से नय के भेदों का विश्लेषण करके नयवाद की सार्थकता पर प्रकाश डाला है, वो यथार्थ है। 309 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org