Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1981
Author(s): Gyanchand Biltiwala
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 220
________________ को कार्यक्रमों में कितने प्रमुख स्थान देती है, कितना नकेल अपने हाथ में रख ये मंजे हुए नेता पर्दे के उनसे निर्देशन लेती है ? कथनी-करनी का यह पीछे रह कर अपने मत एवं विचार धारा का अन्तर किसी से छुपा नहीं है । पोषण करवाते हैं तथा अपना वर्चस्व कायम रखने के लिये युवाशक्ति का खुला दुरुपयोग करते हैं। ऐसे अर्थ-सम्पन्न व्यक्तियों का ज्ञान,धर्म एवं भावना उदाहरण जैन समाज में भी बहुलता से देखने में सम्पन्न व्यक्तियों पर वर्चस्व कायम रहता है। इस पा रहे हैं। अभी इस विषय पर अधिक लिखना वर्चस्व को सींचने वाली ये संस्थायें किस प्रकार संभव नहीं। नैतिक जागरण का दम भरती है, समझ में नहीं पाता । यह सहज मानवीय प्रवृति है कि ग्राम यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि युवाओं का आदमी पूजी प्रिय होने पर भी पूजीपतियो से दामन तो पाक साफ है । ऐसा बिल्कुल नहीं है। नफरत करता है। स्थिति को इस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा कि सामाजिक, धार्मिक कार्यों में युवा "होश कम जोश ___ हर व्यक्ति अथवा गुट चूकि अपना झंडा अलग ज्यादा" की उक्ति चरितार्थ करते हैं। वस्तुतः गाड़ना चाहता है, अतः इस महत्वकांक्षा को पूरा युवक ही जागरूक हों व धर्म, समाज के क्षेत्र में भी करने के लिये येन-केन-प्रकारेण अजित की गयी समझदारी से काम लें तो उन्हें कौन बरगला जन शक्ति एवं धन से समाज में कार्यक्रमों का तो सकता है । हो सकता है, कुछ युवा संस्थायें उनकी अंबार लगा सकता है, किन्तु यह अंबार लगना अलग आड़ में खेले जा रहे असली खेल को न जानती हों, बात है एवं उनसे किसी चारित्रिक प्रभाव की किन्तु दोष किसका ? वे यह कह कर हाथ नही उपलब्धि होना अलग । झाड़ सकती कि हम तो कुछ समझते नहीं हैं। युवा संगठन, अन्धी तरुणाई, बहके कदम : सर्वहित एवं स्वहित में उन्हें समझना ही होगा, अन्यथा इसके घातक परिणाम की कल्पना करना __इधर संस्थाओं की बाढ़ ने एक नयी करवट कठिन नहीं है। ली है, वो है नित्य नयी युवा संस्थाओं का निर्माण। तो अब करें क्या ? यही प्रश्न है जिसका इनकी बढ़ोतरी चमत्कारिक है। एक ठीक-ठीक . उत्तर खोजना हैं। स्थिति विषम अवश्य हैं किन्तु जनसंख्या वाले शहर में 10 से 15 तक जैन युवा संस्थायें पायी जाती है । वैसे तो युवकों के वैयक्तिक असाध्य नहीं । सामाजिक एवं राष्ट्रीय पुनरुत्थान में संगठित होकर नीति या अनीति-समाधान सही चुनाव से : आगे आने से किसे प्रसन्नता नहीं होगी ? किन्तु ऐसी कई संस्थायें जिनका उद्भव ही और सस्थानों ___उपरोक्त विश्लेषण से प्रतीत होता है कि की तरह किसी अन्य प्रयोजन को लेकर हया है, मूलत: संकट नैतिक मूल्यों पर अनास्था का हैं । निश्चय ही आलोच्य हैं। एक बार संस्थायें यह आस्था जागृत करें, चाहे जबरदस्ती ही, तो निःसन्देह वे प्रभावकारी सिद्ध राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक पार्टियों की एक होगी। संस्था की उत्पत्ति एवं कार्यकारिता की या अधिक युवा विंग (Wings) होती हैं जो कि उपादेयता का अंकन निम्न चार बिन्दुओं से किया अपनी किसी स्वतंत्र विचार धारा से अनुप्राणितजा सकता हैं :न होकर संरक्षक पार्टियों के शीर्ष नेताओं द्वारा 1-क्या नई संस्था के गठन के बिना वांछित संचालित होती है। इस प्रकार इन युवकों की उद्देश्य की पूर्ति असंभव हैं ? यदि कोई संस्था 4/11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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