Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 9
________________ कांठे बेठेलो पेलो मंख ए चक्रवाकना जोडाने एकबीजामां लीन थतुं जोई रह्यो हतो. एवामां कोइने खबर न पडे ए रीते एक शिकारी-पारधी त्यां धीमे धीमे आवी पहोंच्यो, तेणे कान सुधी धनुष्यने खेंचीने ए बिचारा जोडा उपर बाण फेंक्यु. हवे दैवयोगे ए बाण पेला एकला चक्रवाकने ज वाग्यु. मर्म स्थानमां बाण वागवाथी चक्रवाक घानी पीडाने लीधे मरणनी छेल्ली पळे आवी पहोंच्यो. एने एवो तरफडतो जोईने ए मरे ते पहेलां ज पोताना पतिना मरणना दुःखने जाहेर करवा ची ची एवो अवाज करती पेली चक्रवाकी पण करुणरीते तरफडीने मरी गई अने ते पछी थोडी ज वारमा पेलो चक्रवाक चक्रवाकीनी पाछळ मरी गयो. सरोवरने काठे बेठेला पेला मंखे पोतानी नजरोनजर आ बनाव जोयो, जोतां ज तेने मूर्छा आवी गई, तेनी आंखो मींचाई गइ अने ते जमीन उपर ढळी पड्यो. मंखना पिता केशवे पोताना पुत्रने आम मूर्छा पामतो जोतां तेना मनमां 'आ अचानक शुं थई गयु' एवो अचंबो थयो. केशव पुत्रने ठंडा उपचारथी समाश्वासित को अने हळवेथी बेठो कर्यो. केशवे पोताना पुत्र मंखने बेठो श्रयेलो अने भानमां आवेलो जोईने पूछ्यु-हे पुत्र ! आ शुं थयुं ? तने शुं वायुनो क्षोभ थयो, प्रबळ पित्तनो विकार थयो, अचानक नबळाई आवी गई के आम थवानुं बीजं कोई कारण बन्युं जेने लीधे तुं जमीन ऊपर ढगलो थइने बहुवार सुधी पडी रह्यो अने बेभान रह्यो ? तुं मने आ बनावनी साची Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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