Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 307
________________ महावीर परिचय और वाणी ३११ को चिन्ता म मन पडना । ध्यान रह कि इस जगत म जिसे मुक्त होना है उस दुष से हो मुक्त होना है। सुस है ही नहीं उससे मुक्त क्या होइएगा? वह भ्रम ह । दुख से मुक्त होना होता है और दुख से भक्ति दूख को स्वीकृति मे छिपी है, उसके समग्र स्वीकार म निहित है। वाया दुख है, इसके समग्र स्वीकार को ही काया-वा कहते ह । वाया क्लेग का अर्थ है कि स्वीकार कर लो दुख को । इतना स्वीकार करा कि तुम्हें क्लेश का बोध ही मिट जाए । क्लेश का वाघ उसी दिन मिट जाएगा जिस दिन पूण स्वीकृति होगी। इसलिए महावीर सब दुखा के बीच आनद से मरे धूमत रहत हैं। वाया-क्लेश को स्वीकृति इतनी गहन हो गई है कि उसे दुख का काई पता भी नहीं चलता। काया-क्लेश की साधना गुरू होती है दुस के स्वीकार से पूण होनी है दुप, विसान स। दुप वस्तुत विसर्जित नहीं हो जाता। जव तक जीवन है तब तक तो वह रहेगा ही, लेकिन जिस दिन स्वीकार पूरा हो जाता है उस दिन आपके लिए दुख नहा रह जाता। दुख की स्वीकृति द्वारा दुस से मुक्ति का उपाय करना ही पाया-करेग की साधना है। काया को क्प्ट देने की कोशिश काया-क्लेश की साधना नहीं कही जा सक्ती, क्याकि जो व्यक्ति काया को दुख देने म लगा है, वह किसी न किसी सुख की नाकाक्षा से प्रोत्साहित होता रहता है । जब तक हम काइ सुप के लिए प्रयत्न करत हैं तब तक हम सुख की ही आकाक्षा से करत हैं। हम अपने शरीर का भी सता सक्त हैं सिफ इस उम्मीद मे कि हम मोक्ष मिलेगा, आत्मा मिलेगी। किन्तु महावीर की दृष्टि म विसी सुन के लिए गरीर को दुस देना काया रेश नहीं है। बाह्य तप का अन्तिम सूत्र है सरीनता । सलीनता सेतु है वाह्य तप और जन्तर तप के बीच, वह सीमान्त है। वही स बाह्य तप समाप्त होत हैं और अन्तर तप का भारम्भ होता है । परम्परा के अनुसार अपने गरीर के अगा को व्यय संचालित न करना सलीनता है । लेकिन बात इतनी ही नहीं है, बत्ति यह तो कुछ भी नहीं है। सलीनता तय घरित होती है जब भौतर सब शान्त हो जाता है जब भीतर स एसी पाई तरग नही नाती जो शरीर पर कम्पन बने। सलीनता ये अभ्यास म जिमरा उतरना हा उस पहले अपन शरीर को गति विधिया का निरीक्षण परना हाता है। सलीनता का पहला प्रयाग है सम्यक निरी क्षण। जब आपका मन शान्त हो तब आईने के सामने खड़े हो जाइए। जब कोई गात चित से अपने प्रोध का निरीक्षण करता है तो प्रोष विलीन हो जाता है, निरोपण से शाति और गहरी हा पाती है। प्रोध इसलिए विलीन हा जाता है कि प्राप से आपका सम्य प टूट जाता है। प्रोध स सम्बद्ध होन के लिए बेचैन हाना जारी है वितु अध्ययन के लिए गान्त होना आवश्यक है। महावीर ने तल्लीनता मा उपयोग नहीं किया है। तल्लीनता सदा दूसरे म लीन होन का नाम है और

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