Book Title: Mahavir Ke Upasak
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Muni Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 71
________________ 11. पौषधव्रत : २४ घण्टों के लिये निराहार रहने की साधना पौषधव्रत है | गृहस्थ एक मास में दो बार इस साधना को करे। 12. अतिथि -संविभाग व्रत : साधु-साध्वियों को निर्दोष आहार-पानी देना तथा द्वार पर आये याचक को दान देना। 1. दर्शनप्रतिमा : एक मास तक सावधानी पूर्वक आराधना निरतिचार सम्यग्दर्शन की आराधना करना। 2. व्रत प्रतिमा : दर्शनप्रतिमा के अनुसार निरतिचार सम्यग्दर्शन का पालन करते हुए दो मास तक १२ व्रतों का निर्दोष रूप से पालन करना। 3. सामायिक प्रतिमा : तीन मास तक प्रतिदिन प्रात: सायं अप्रमत्त भाव के साथ सामायिक करना। 4. पौषध प्रतिमा : अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावस्या इन चार पर्व दिनों में पौषध व्रत करना । यह प्रतिमा चार मास की होती है। 5. कायोत्सर्ग प्रतिमा : पर्व दिवसों में घर या बाहर, चतुष्पथ आदि में रात भर कायोत्सर्ग करके रहना। यह पांच मास की है। 6. अब्रह्मवर्जन प्रतिमा : छह मास तक निर्दोष रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना। 7. सचित्त - वर्जन प्रतिमाःसात महीने तक सचित्त आहार का परित्याग करना। 8. आरम्भ-वर्जन प्रतिमा : आठ मास तक अपने हाथ से किसी भी निमित्त से आरम्भ करने का त्याग करना। 9. प्रेष्य-वर्जन प्रतिमा : नौ मास तक नौकर आदि से भी आरम्भ न करवाना। 10. उद्दिष्ट-वर्जन प्रितमा : प्रतिमाधारी के उद्देश्य से बनाया हुआ आहार भी न लेना | इसका कालमान दस मास का है। 11. श्रमणभूतप्रतिमा : स्वजन - परिजनों के सम्बन्धों का त्याग कर मुख वत्रिका, रजोहरण आदि साधुवेश को धारण कर, केशलोच करते हुए, मुनि की भाँति ११ महिने तक रहना, श्रमणभूतप्रतिमा है। इन प्रतिमाओं का पालन क्रमश: किया जाता है | इनकी आराधना में कुल ६६ मास अर्थात ५ वर्ष ७ मास लगते हैं। 70/महावीर के उपासक

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