Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Bakul Raval, C N Sanghvi
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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________________ अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ 355 50. आखिर... ईश्वरको किस स्वरूप में कैसा मानें? - पंन्यास अरुणविजय गणि महाराज ईश्वर को माने या न मानें? मान्यता यह श्रद्धा का विषय है। जबकि जानना यह ज्ञान का विषय है। श्रद्धा का आधार भी सही-सच्चे ज्ञान पर है। यदि ज्ञान ही सच्चा सम्यग् नहीं होगा तो श्रद्धा भी सच्ची-सम्यम् नहीं हो सकती, वह भी मिथ्या या अंधश्रद्धा हो जाएगी। अत: सच्ची-सही श्रद्धा के लिए सच्चे-सम्यग् ज्ञान का होना नितान्त आवश्यक है। वाचकवर्य उमास्वातिजी महाराजने "तत्त्वार्थाधिगम सूत्र" में - "तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग् दर्शनम्" सूत्र में तत्त्व और अर्थ-उभय का यथार्थ ज्ञान सम्यग् दर्शन कहा है। श्रद्धा और ज्ञान के लिए तत्त्वभूत पदार्थों का होना आवश्यक है। . जिन्होंने तत्त्वभूत पदार्थ ही नहीं माने हैं वे ज्ञान-श्रद्धा को भी नहीं मान सकते। चार्वाक (नास्तिक) मतवादी एसे कई नास्तिक लोक जो तत्त्वभूत पदार्थ मानते ही नहीं है, उन्हें श्रद्धा होने का प्रश्न ही खडा नहीं होता है। ऐसे तत्त्वभूत पदार्थ आत्मा-परमात्मा (ईश्वर)), लोक-परलोक, अलोक, स्वर्ग-नरक, पूर्वजन्म, पुन:जन्म, पुण्य-पाप, कर्म-धर्म, मोक्ष आदि हैं। ये सभी दृष्टिगोचर - दृश्य नहीं परन्तु ज्ञानगम्य-अदृश्य है। ये सभी लोकोत्तर पदार्थ है; लौकिक नहीं। लौकिक पदार्थ संसार की वस्तुएं आदि सेंकडों है जो दृश्य-दृष्टिगोचर है। उनकी श्रद्धा आदि का प्रश्न ही नहीं खड़ा होता है। अतः आस्तिक होने के लिए आत्मा-परमात्मा (ईश्वर) मोक्षादि लोकोत्तर कक्षा के ज्ञानगम्य-अदृश्य तत्त्वभूत पदार्थों को जानना मानना अनिवार्य है और