Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 667
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता ते चिय इह धन्ना सुद्धनियजम्मजीवियफला य । जे उज्झिऊण महिला संजमसेलं समभिरूढा ॥ ८ ॥ धन्नो सणकुमारो जो पुरमंतेउरं सिरिं रज्जं । उज्झित्ता निक्खतो परमप्पा मोक्खसोक्खकए ॥ ९ ॥ एको अहं अधन्नो जो कुलडाए अणत्थमूलाए । दुट्ठमहिलाए कज्जे एवं बुत्थोऽम्हि घरवासे ॥ १० ॥ अहवा समइकंतत्थ सोयणेणं इमेण किं बहुणा ? । एत्तोवि सङ्घविरहं भावेणाहं पवजामि ॥ ११ ॥ इय चिंतिऊण तेणं तिविहंतिविहेण वोसिरिय संगं । पंचपरमेट्ठिमंतो पारो सरिउमणवरयं ॥ १२ ॥ अह पबलचलणपीडोव कमियाऊ चइन्तु नियदेहं । भासुरसरीरधारी देवो वेमाणिओ जाओ ॥ १३ ॥ आउक्खमि तत्तो सोचविऊणं विदेहवासंमि । निट्टत्रियकम्मगंठी पाविस्सइ सासयं ठाणं ॥ १४ ॥ इ गोवम ! निञ्चलमाणसस्स जिणभणियधम्मकज्जंमि । जायइ जीवस्स धुवं अकालखेवेण सिवलाभो ॥ १५ ॥ ११ ॥ भणियं तदयं सिक्खावयं इमं संपयं पुण चउत्थं । एदंपज्जसमेयं जह होइ तहा निसामेह ॥ १ ॥ अन्नाणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुयं । दाणं जईणमुचियं चउत्थ सिक्खावयं एयं ॥ २ ॥ सच्चित्तनिक्खिवणयं वज्जइ सच्चित्तपिहणयं चैव । कालाइक्कम परववएस मच्छरिय पंचेव ॥ ३ ॥ अन्नाईण पयाणं नियंपिय होइ गिहिजणस्सुचियं । जइणो पहुच किं पुण पोसह उववासपारणए ? ॥ ४ ॥ अतिहीण संविभागं नूणमकाउं न जे पजीमंति । ते साडुरक्खिओ इव देवाणवि होंति महणिज्जा ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696