Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 407
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरणाहरणपर्व ( ४०३ ) हलिक ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक हैं ( शान्ति० २०८ । १९)। हरिश्चन्द्र-इक्ष्वाकुवंशी राजा त्रिशङ्खके पुत्र । इनकी माताका हरणाहरणपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय नाम सत्यवतो था (सभा० १२ । १० के बाद दा० पाठ)। ये इन्द्रसभामें सम्मानपूर्वक विराजते हैं ( सभा० हरि-(१) रावणकी सेवामें रहनेवाले पिशाच तथा अधम ७ । १३)। ये बड़े बलवान् और समस्त भूपालोके राक्षसोका एक दल, जिसने वानरोंकी सेनापर धावा किया था सम्राट थे । भूमण्डलके सभी नरेश इनकी आज्ञाका पालन (वन० २८५ । १-२) । (२) गरुड़के महाबली करनेके लिये सिर झुकाये खड़े रहते थे। इन्होंने अपने तथा यशस्वी वंशजों से एक (उद्योग० १०१ । १३)। एकमात्र जैत्र नामक रथपर चढकर अपने शस्त्रोंके प्रतापसे (३) घोड़ोंका एक भेद, जिसके गर्दनके बड़े-बड़े बाल सातों द्वीपोंपर विजय प्राप्त कर ली थी। इन्होंने राजसूय और शरीरके रोयें सुनहरे रंगके हों, जो रंगमें रेशमी नामक यज्ञका अनुष्ठान किया था। इन्होंने याचकों के पीताम्बरके समान जान पड़ता हो, वह घोड़ा हरि कहलाता माँगनेपर उनकी माँगसे पाँचगुना अधिक धन दान किया है (द्रोण. २३ । १३)। (४) राजा अकम्पनका था । ब्राह्मणोंको धन-रत्न देकर संतुष्ट किया था। इसीलिये पुत्र, जो बलमें भगवान् नारायणके समान, अस्त्रविद्यामें ये अन्य राजाओंकी अपेक्षा अधिक तेजस्वी और यशस्वी पारङ्गत, मेधावी, श्रीसम्पन्न तथा युद्ध, इन्द्रके तुल्य हुए हैं तथा अधिक सम्मानपूर्वक इन्द्रसभामें विराजमान पराक्रमी था । यह युद्धक्षेत्रमें शत्रुओंके हाथ मारा गया होते हैं (सभा० १२ । ११-१८)। इनकी सम्पत्तिको था (द्रोण० ५२ । २७-२९) । इसकी मृत्युका वर्णन देखकर चकित हो स्वर्गीय राजा पाण्डुने नारदजीद्वारा ( शान्ति. २५६ । ८) । (५) एक असुर, जो युधिष्ठिरके पास राजसूययज्ञ करनेका संदेश भेजा था तारकाक्षका महाबली वीर पुत्र था। इसने तपस्याद्वारा (सभा० १२ । २३-२६)।इनके द्वारा मांस-भक्षणका ब्रह्माको प्रसन्न करके उनसे वरदान पाकर तीनों पुरोंमें निषेध (अनु० ११५। ६१)। ये सायं-प्रातःस्मरणीय मृत-संजीवनी बावलीका निर्माण किया था (कर्ण नरेश हैं ( अनु० १६५ । ५२)। ३३ । २७-३०)। (६) पाण्डवपक्षका एक योद्धा, जो हरिश्रावा-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतवासी कर्णद्वारा मारा गया था (कर्ण० ५६ । ४९-५०)। पीते हैं (भीष्म०९।२८)। (७) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ६१)। हरी-क्रोधवशाकी पुत्री, जिसने वेगवान् घोड़ों एवं वानरोंको (८) श्रीकृष्णका एक नाम तथा इस नामकी निरुक्ति ____ जन्म दिया तथा गायके समान पूँछवाले लंगूर भी इसी(शान्ति० ३४२ । ६८)। के पुत्र कहे गये हैं (आदि०६६ । ६०, ६४)। हरिण-(१) ऐरावतकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । ११-१२)। हर्यश्व-(१) अयोध्याके राजा, जो महापराक्रमी, चतुर ङ्गिणी सेनासे सम्पन्न, कोष-धन-धान्य तथा सैनिक शक्तिसे (२) बिडालोपाख्यानमें आये हुए नेवले का नाम (शान्ति० १३८ । ३१)। समृद्ध थे। प्रजा इन्हें बहुत प्रिय थी । ब्राह्मणोंपर इनका प्रेम था। ये प्रजावर्गके हित एवं संतानकी कामना रखते हरिणाश्व-एक प्राचीन नरेश, जिन्हें महाराज रघुसे खडकी प्राप्ति हुई थी और उन्होंने वह खड्ग शुनकको प्रदान थे और शान्तभावसे तपस्यामें संलग्न रहते थे ( उद्योग किया था (शान्ति० १६६ । ७८-७९)। ११५ । १८-१९)। इनके पास ययातिकन्यासहित गालवका आगमन (उद्योग० ११५ । २०-२१)। हरिताल-एक पर्वतीय धातु, जो संध्याकालीन बादलोंके गालवको शुल्करूपमें दो सौ श्यामकर्ण घोड़े देकर इनका समान लाल रंगकी होती है (वन० १५८ । ९४)। ययातिकन्या माधवीको एक संतान पैदा करनेके लिये पत्नी हरिद्रक-कश्यपवंशमें उत्पन्न एक प्रमुख नागराज बनाना तथा माधवीके गर्भसे वसुमना नामक पुत्रकी प्राप्ति (आदि० ३५। १२)। (उद्योग० ११६ । १६-१७)। पुत्रोत्पत्तिके बाद पुनः हरिपिण्डा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य०४६ । माधवीको गालव मुनिको वापस देना ( उद्योग० ११६ । २४)। २०)। इन्होंने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया था हरिमेधा-एक प्राचीन राजर्षि, जिनके यज्ञके समान जनमेजयका यज्ञ बताया गया है ( आदि० ५५ । ३)। (अनु० ११५ । ६७) । (२) काशिराज सुदेवके पिता, जो वीतहव्यके पुत्रोंद्वारा मारे गये थे (अनु० इनकी कन्याका नाम ध्वजबन्ती था, जो पश्चिम दिशामें निवास करती थी ( उद्योग० ११० १३)। ३० । १०-११)। हरिबभ्र-एक जितात्मा एवं जितेन्द्रिय मनि, जो यजिकिर हर्ष-धमेके तीन श्रेष्ठ पुत्रों से एक, शेष दोके नाम शम और ___ सभामें विराजते थे (सभा०४।१६)। काम हैं । हर्षकी पत्नीका नाम नन्दा है ( आदि. ६६ । हरिवर्ष-हेमकूटपर्वतके उत्तरमें विद्यमान एक वर्ष, जहाँ ३२-३३)। उत्तरदिग्विजयके अवसरपर अर्जुन गये थे और उसे अपने हलधर-बलरामजीका एक नाम ( देखिये बलदेव)। अधीन करके बहुत-सा रत्न प्राप्त किये थे (सभा० २८। हलिक-कश्यपवंशमें उत्पन्न एक प्रमुख नागराज (आदि. ६ के बाद दा० पाठ)। ३५ । १५)। For Private And Personal Use Only

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