Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुन ( १७ ) अर्जुन अस्त्रकौशल (आदि० १३४॥१८-२५)। रङ्गभूमिमें कर्णको ( आदि० १८९ । १०-२२ ) । द्रौपदीके विषयमें इनकी इनकी फटकार ( आदि. १३५ । १८) । कर्णसे लड़नेके युधिष्ठिरसे बातचीत ( आदि० १९० । ८-१० )। लिये रङ्गभूमिमें इनका उद्यत होना (आदि० १३५ । २१)। द्रौपदीके साथ इन (पाण्डवों) का विधिपूर्वक विवाह इनके द्वारा मन्त्रियोंसहित द्रुपदकी पराजय और उन्हें (आदि० १९७ । १३ )। ब्राह्मणके गोधनकी रक्षाके लिये बंदी बनाकर द्रोणाचार्यको सौंपना ( आदि० १३७।६३)। इनका आयुधागारमें प्रवेश और वनवास ( आदि. इनका द्रुपदकी 'अहिच्छत्रा' नगरीको जीतकर उसे २१२ । १९-३५)। हरिद्वारमें उलूपीद्वारा इनका नागद्रोणाचार्यको गुरुदक्षिणाके रूपमें देना ( आदि० १३७।। लोकमै आकर्षण ( आदि० २१३ । १३)। इनके द्वारा ७७)। ब्रह्माशिर' नामक अस्त्रकी परम्परा तथा उसके उलूपीके गर्भसे इरावान् का जन्म ( आदि० २१३ । ३६ उपयोगका नियम बतलाकर द्रोणाचार्यका अर्जनको के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । इनका मणिपूर जाकर विरोधी होनेपर अपने साथ भी लड़नेके लिये वचनबद्ध चित्राङ्गदासे विवाह ( आदि० २१४ । १५-२६ )। इनके करना ( आदि. १३८ । ९-१५)। इनके द्वारा यवनराजा द्वारा चित्राङ्गदाके गर्भसे बभ्रुवाहनका जन्म ( आदि० सौवीरनरेश विपुल और सुमित्रके वध आदि पराक्रमका २१४ । २७ )। इनका दक्षिणके तीथ में जाना और वर्गा धृतराष्ट्रद्वारा चिन्तन ( आदि. १३८ । २०-२३)। आदि अप्सराओंका ग्राह-योनिसे उद्धार करना ( आदि० हिडिम्बके साथ युद्ध होते समय भीमसेनकी सहायताके २१५ एवं २१६ अध्यायोंमें । पुनः मणिपुरमें आकर लिये इनका उद्यत होना (आदि० १५३ ॥ १८-१९)। इनके द्वारा चित्राङ्गदाको आश्वासन और राजसूय यज्ञमें द्रौपदीको इन्हें समर्पित करनेके लिये द्रुपदका संकल्प आनेका आदेश ( आदि. २१६ । २३-३१) । इनका तथा लाक्षागृहमें इनकी मृत्यु होनेका समाचार सुनकर गोकर्णतीर्थकी ओर जाना ( आदि० २१६ । ३४)। प्रभासद्रुपदका शोक ( आदि. १६६ । ५६ के बाद दाक्षिणात्य क्षेत्रमें इनसे श्रीकृष्णकी भेंट ( आदि० २१७ । ३-४)। पाठ, पृष्ठ ४९३) । चित्ररथ गन्धर्वको इनकी फटकार रैवतक पर्वतपर इनका रातभर श्रीकृष्णके साथ विश्राम और इनके द्वारा गङ्गा आदि नदियोंकी महिमा ( आदि. ( आदि० २१७ । ८)। श्रीकृष्णके साथ इनका द्वारका१६९।१६-२४)। युद्ध में इनके द्वारा चित्ररथपर आग्नेयास्त्र- गमन ( आदि० २१७।१५)। सुभद्राहरण के विषय में इनके का प्रहार और उसकी मूर्छा ( आदि. १६९ । ३१-३३)। लिये श्रीकृष्णकी सम्मति (आदि० २१८ । २१-२३)। चित्ररथको इनका जीवन-दान ( आदि० १६९ । ३७)। सुभद्रासे विवाहके लिये इनको युधिष्ठिरकी सम्मति चित्ररथके साथ इनकी मित्रता ( आदि० १६९।३८-५८)। (आदि. २१८ । २५ )। इनके द्वारा सुभद्राका चित्ररथसे इन्हें चाक्षुषी विद्या एवं दिव्य अश्वोंकी प्राप्ति हरण ( आदि० २१९ । ७)। इनसे युद्ध करनेके लिये ( आदि० १६९ । ४३-४६)। इनपर चित्ररत्रके वृष्णिवंशियोंकी तैय री ( आदि० २१९ । १६-१९)। आक्रमणका कारण ( आदि० १६९ । ६०)। चित्ररथपर सुभद्रासे इनका विधिपूर्वक विवाह ( आदि० २२० । १३)। इनकी विजयका कारण ( आदि० १६९ । ७१)। किसी पुष्करतीर्थमें इनके द्वारा वनवासके शेष समयक' यापन श्रोत्रिय ब्राह्मणका पुरोहित रूपमें वरण करने के लिये इनको (आदि० २२० । १४) । सुभद्राको गोपीवेशमें सजाकर चित्ररथकी सलाह ( आदि. १६९ । ७४) । चित्ररथ- उसे द्रौपदीके पास इनका भेजना (आदि० २२० । १९)। को इनके द्वारा आगोयास्त्रका दान ( आदि. १८२ । श्रीकृष्णके साथ इनका यमुनामें जलविहार ( आदि. ३ ) । पाञ्चाल-यात्राके समय मार्गमें अर्जुन आदि २२१ । १४-२०)। खाण्डववनको जलानेके लिये इनसे पाण्डवोंसे व्यासजीकी भेंट ( आदि० १८४ । २)। ब्राहाणरूपधारी अग्निकी प्रार्थना (आदि. २२२ । ५द्रुपदनगरमें अर्जुन आदि पाण्डवोंका भातासहित एक ११)। इनका अग्निदेवसे दिव्य धनुष और रथ आदि कुम्भकारके घरमें ठहरना (आदि० १८४ । ६ )। द्रौपदीके माँगना ( आदि. २२३ । १५-२१)। अग्निका इनको खयंवरमें इन्हें लक्ष्यवेधके लिये उद्यत देखकर इनके गाण्डीव धनुष, अक्षय तरकस एवं दिव्य रथ देना सम्बन्धमे ब्राह्मणों के ऊहापोह ( आदि. १८७१२-१६)। (आदि. २२४ । ६-१४)। खाण्डव दाहके समय इन्द्र स्वयंवरमें इनका लक्ष्यवेध और द्रौपदीका इनके गलेमें आदि देवताओंके साथ इनका भयानक युद्ध (आदि. जयमाला डालना ( आदि. १८७ । २१-८७ के बाद २२६ अ०में ) । इनके द्वारा तक्षक नागकी पत्नीका दाक्षिणात्य पाठ ) । स्वयंवर में आये हुए राजाओंके साथ वध (आदि० २२६ । ६-८)। अश्वसेन (नाग) को ब्राह्मणवेशमें युद्ध करते समय श्रीकृष्णद्वारा बलरामजीको इनका शाप (आदि० २२६ । ११)। इनसे इन्द्र आदि इनका परिचय देना ( आदि. १८८ । २०)। स्वयंवरमें देवताओंकी पराजय तथा इन्द्रका स्वर्गको लौटना (आदि. कर्णसे इनका युद्ध और इनके द्वारा उसकी पराजय २२६ । १३-२३)। भयासुरको इनका अभयदान म. ना०३ For Private And Personal Use Only

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