Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१४३ .
(२६) मैसूर राज्य। इस राज्यमें २९४३३ वर्गमील स्थान है।
चौहद्दी इस प्रकार है-सिवाय उत्तरके सब ओर मदरासके जिले हैं । पश्चिममें दो बम्बईके जिले हैं, दक्षिण पश्चिममें कुर्ग है।
___ इतिहास-मैसूरका पुराना इतिहास सन् ई० से ३२७ वर्ष पहले शुरू होता है जब महान सिकन्दरने भारतपर चढ़ाई की थी। यह बात उन ७००० लेखोंसे प्रगट है जो राज्यभर में फैले हुए हैं (See Epigraphica Carnatica 12 Volumes by M. L. Rice C. I. E) सिकन्दरके पीछे महाराज चंद्रगुप्तका सम्बन्ध मिलता है । जैनियोंकी कथाओंसे और शिलालेख तथा स्मारकोंके प्रमाणोंसे यह सिद्ध है कि महाराज चंद्रगुप्त मौर्याने अपना शेष जीवन मैसूरके श्रवलबेलगोला स्थानमें बिताया था। जैन कथासे प्रगट है कि जब श्रीभद्रबाहु श्रुतकेवलीने यह भविप्यवाणी कही कि १२ वर्षका दुप्काल पड़ेगा तब उसके प्रारंभमें ही महाराजा चंद्रगुप्तने राज्य त्यागके साधुवृत्ति धारण करली और अपने गुरु महाराजके साथ उज्जैनसे दक्षिणकी तरफ प्रस्थान किया। जब वे श्रवणबेलगोला आए, भद्रबाहुस्वामीने अपना मरण निकट जाना तब अपने मुनिसंघको विशाखाचार्यके आधिपत्यमें पुन्नाटदेश (मैसूरका दक्षिण पश्चिम भाग) में भेज दिया। आप स्वयं वहां ठहर गए । मात्र एक शिप्य उनके साथ रहा । वह महाराजा चन्द्रगुप्त थे। भद्रबाहुस्वामीका स्वर्गवास हुआ पश्चात् १२ वर्ष तप करके महारान चंद्रगुप्तने भी समाधिमरण किया। मैसूरके उत्तर पूर्व अशोकके शिलालेख मिले हैं जिससे सिद्ध है कि इस मैसूरके भाग