Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology
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११.
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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 13, उद्देशक 7. सुत्त 12 और 13 १२. स्थानांग सूत्र, अध्ययन 3, उद्देशक 1, सुत्त 181 १३. स्थानांग सूत्र, अध्ययन 3, उद्देशक 1, सुत्त 198 १४. स्थानांग सूत्र, अध्ययन 3, उद्देशक 1, सुत्त 181 १५. (क) लोकप्रकाश, 3.1306 (ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, भाग 1, कारिका 230
(ग) कर्मग्रन्थ, भाग 4. व्याख्याकार मुनि मिश्रीमल, गाथा 24 की व्याख्या, पृष्ठ सं. 188 (क) लोकप्रकाश, 3.1306 (ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, भाग 1, 9वां अधिकार, कारिका 231 (ग) कर्मग्रन्थ, भाग 4, व्याख्याकार मुनि मिश्रीमल, गाथा 24 की व्याख्या, पृष्ठ सं. 188 लोकप्रकाश 3.1307 लोकप्रकाश 3.1308 और 1309 लोकप्रकाश 3.1310 से 1316 लोकप्रकाश 3.1317 और 1318 लोकप्रकाश 3.1319
लोकप्रकाश 3.1320 से 1323 की व्याख्या से उद्धृत, पृष्ठ सं. 309 और 310 २३. (क) लोकप्रकाश, 3.1324 (ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, भाग 1, 9वां अधिकार,
कारिका 232 (ग) कर्मग्रन्थ, भाग 4, व्याख्याकार मुनि मिश्रीमल, गाथा 24 की व्याख्या, पृष्ठ सं.
188-189 २४. कर्मग्रन्थ, भाग 4, व्याख्याकार मुनि मिश्रिमल, गाथा 24 की व्याख्या, पृ. सं. 189 २५. (क) लोकप्रकाश, 3.1324 (ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, भाग 1, 9वां अधिकार,
कारिका 234 (ग) कर्मग्रन्थ, भाग 4, व्याख्याकार मुनि मिश्रीमल, सूत्र 24 की व्याख्या, पृष्ठ सं. 189 २६. लोकप्रकाश, 3.1325 २७. लोकप्रकाश, 3.1326-1327
द्रष्टव्य (क) लोकप्रकाश, 3.1330 (ख) कर्मग्रन्थ, भाग 4, सूत्र 24, पृ. सं. 189 (ग) गोम्मटसार
जीवकाण्ड, गाथा 239 २६. द्रष्टव्य (क) लोकप्रकाश, 3.1331-1332 (ख) कर्मग्रन्थ, भाग 4, सूत्र 24, पृ. सं. 189 (ग)
गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 240
द्रष्टव्य (क) कर्मग्रन्थ, भाग 4, सूत्र 24, पृ. सं. 190 (ग) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 24 ३१. लोकप्रकाश, 3.1334 ३२. उक्तस्य सूक्ष्मशरीरस्य स्वरूपमाह- 'सप्तदशैकं लिंगम्' -सांख्यतत्त्वकौमुदी, अध्याय 3. सूत्र 9 ३३. ननु तै जसमपि शरीरं विद्यते, यद् भुक्ताहारपरिणमनहे तुर्य द्वशाद
विशिष्टतपोविशेषसमुत्थलब्धिविशेषस्य पुरुषस्य तेजोलेश्याविनिर्गमः तत् कथमुच्यते एत एव योगा नान्ये?इति, नैष दोषः सदा कार्मणेन सहाऽव्यभिचारितया तैजसस्य तद्ग्रहणेनैव गृहीतत्वादिति।
-कर्मग्रन्थ, भाग 4, स्वोपज्ञ टीका, पृ. 154 ३४. द्रष्टव्य (क) लोकप्रकाश, 3.1337-1338 (ख) कर्मग्रन्थ, भाग 4, व्याख्याकार मुनि मिश्रीमल, गाथा
24 की व्याख्या, पृष्ठ सं. 186-187 ३५. द्रष्टव्य-(क) लोकप्रकाश, 3.1339-40 (ख) कर्मग्रन्थ भाग 4, पृ. सं. 186

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