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भगवान ऋषभ-१३ भव भगवान शांति-१२ भव भगवान मुनिसुव्रत-६ (३) भव भगवान अरिष्टनेमि-६ भव भगवान पार्श्व-१० भव भगवान महावीर-२७ भव शेष सभी तीर्थंकरों के-३ भव
तीर्थंकरों के बोधि प्राप्ति का कारण
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीव मुक्ति से पूर्व तेरहवें भव में महाविदेह क्षेत्र के क्षितिप्रतिष्ठित नगर में धन्ना सार्थवाह के रूप में उत्पन्न हुआ। उस भव में साधुओं को घृत दान देते हुए बोधि (सम्यक्त्व) को प्राप्त हुआ।
दूसरे तीर्थंकर भगवान श्री अजितनाथ ने अपने पूर्व जन्म में घोर तपस्या की थी। वहाँ विमल वाहन राजा के भव में अरिमर्दन आचार्य का उपदेश सुनकर बोधि की प्राप्ति हुई। उसी भव में दीक्षा ली तथा महान कर्म निर्जरा कर तीर्थंकर गोत्र का बंध किया।
तीसरे तीर्थंकर भगवान श्री संभवनाथ ने अपने पूर्व जन्म में विपुल वाहन राजा के भव में धर्म दलाली व शुद्ध दान (सुपात्र दान) से बोधि की प्राप्ति की। उसी भव में तीर्थंकर बंध के २० बोलों की आराधना कर तीर्थंकर गोत्र का बंध किया।
पांचवें तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ ने पुरुष सिंह राजकुमार के भव में विनय नंदन मुनि के उपदेश से, २१वें तीर्थंकर नमिनाथ ने संसार की नश्वरता का चिंतन करते हुए, २०वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत ने नंदन मुनि के प्रवचन से तथा भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्ति से पूर्व २७वें भव में सुपात्र दान से बोधि की प्राप्ति की। बोधि वृक्ष और बोधि प्राप्ति
___ बोधि वृक्ष बहुत विश्रुत है। अश्वत्थ संज्ञा से प्रसिद्ध यह वृक्ष चिकित्सा दृष्टि से विवेचित है। साधना की दृष्टि से इसका निरूपण महत्त्वपूर्ण है। इसके नीचे बैठने वाले व्यक्ति के श्वास रोग दूर होता है यह चिकित्सा सम्मत्त है। इसके नीचे बैठने वाले व्यक्ति के बोधि विकसित होती है, अन्तर्दृष्टि जागती है यह साधना सम्मत्त है। इसलिए प्राचीन साहित्य में चैत्य वृक्ष के रूप में इसकी प्रतिष्ठा हुई है।
१२ / लोगस्स-एक साधना-२