Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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वर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्'
'रषाभ्यां नोण: 2 समान पदे' इस सूत्र के भाष्य में 'राभ्यां गत्वे कार ग्रहणम्' यह वार्तिक पढ़ा गया है । इसी वार्तिक को फलितार्थ रूप में लघुसिद्धान्तकौमुदी में आचार्य वरदराज ने लिखा है । मातृणां पितॄणां इत्यादि प्रयोगों में णत्व के लिए इस वार्तिक का प्रयोग किया गया है । 'रषाभ्यां' सूत्र के द्वारा 'रकार शकार' के बाद 'नकार' को 'णत्व' किया जाता है । 'मातृणा' इत्यादि में 'रकार शकार' के बाद 'नकार' न मिलने से 'णत्व' प्राप्त नहीं था। इस वार्त्तिक के द्वारा 'णत्व' किया जाता है । यहाँ शंका होती है कि 'मातृणा' इत्यादि प्रयोगों में जो 'रेफांश' उसको निमित्त मानकर सूत्र से ही 'णत्व' सिद्ध हो जाएगा । वार्त्तिक व्यर्थ है । जैसा कि भाष्यकार ने कहा कि 'इस वार्त्तिक को नहीं बनाना चाहिए । 'कार' घघटक 'रेफ' को 'निमित्त' मानकर णत्व' सिद्ध हो जाएगा । यह शंका ठीक नहीं है क्योंकि 'रषाभ्यां नोणः समानपदे' इस सूत्र में 'ब' के साहचर्य से 'रेफ' भी वर्णरूप ही लिया जाएगा और वर्ण वही है जो पृथक यत्न ते साध्य हो । 'कार' घटक 'रकार' वैसा नहीं है । वह वर्ण न होकर वर्णैकदेश है और वर्णैकदेश वर्ण के ग्रहण से ग्रहीत
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, अजन्त पुल्लिंग प्रकरण, पृष्ठ 197. 2. अष्टाध्यायी 8/4/2
3. पृथक प्रयत्न निर्वर्त्य वर्णयिच्छन्त्याचार्याः । - न्यास 87471