Book Title: Laghu Shanti Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Foundation

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Page 24
________________ = ॥ लघु शान्ति विधान।। महाजयमाला (समानसवैया) शिवद्वारे अरहन्त खड़े हैं, सिद्ध बुलाते भीतर आओ। सकुचाहट अघाति की नाशो, अपने पावन चरण बढ़ाओ। मुक्ति-वधू वरमाला लिये है, वन्दनवारे सजी सिद्धि की। पूर्ण शुद्धता तुम्हें मिली है, दर्शन-ज्ञानमयी विशुद्धि की। निःसंकोच बढ़े यह सुनकर, श्री अरहन्त त्रिलोकाग्र पर। सिद्धशिला सिंहासन पाया, हुए सदा को ही स्वमुक्ति वर।। सप्त स्वरों में इन्द्र सुरों ने, गाए गीत सहज अवनी पर। नाच उठा गगनांगन सर-सर, नीचे सागर निर्झर झर-झर।। भव्य जीव पुलकित हैं उर में, मुक्तिमार्ग भी सरल हो गया। जो स्वभाव से दूर बसे हैं, उनको शिवपथ विरल हो गया। सर्व ज्ञेय-ज्ञाता होकर भी, निजानन्द रस लीन हो गए। गुण अनन्त प्रगटा कर अपने, ज्ञानोदधि तल्लीन हो गए। विरुदावली विश्व गाता है, चौंसठ यक्ष ढोरते चामर । शत इन्द्रों से वन्दित है प्रभु, चिदानन्द चेतन नट नागर।। समवशरण वैभव ठुकराया, दिव्यध्वनि की भाषा छोड़ी। कर्मप्रकृतियाँ सगरी तोड़ी, नित्य निरंजन चादर ओढ़ी। अब तो शिवसुखही शिवसुख है, दुख का नाम निशान नहीं है। शिवसुख सागरमयी हो गए कहीं दुःखों का नाम नहीं है।। अखिल विश्व में नमः सिद्ध का, गूंजा जय जय नाद मनोहर। निज पुरुषार्थ शक्ति से पायी, अपनी पावन शुद्ध धरोहर।। परम शान्ति की गंगा प्रभु के चरण पखार रही है पावन । परम शान्ति का सागर प्रभु, अभिषेक कर रहा है मनभावन। भव्यों का सौभाग्य जगा है, जिनगुण-सम्पत्ति निकट आ गई। विपदाओं की काली बदली, स्वयं विलय हो त्वरित उड़ गई। - (२३) =

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