Book Title: Laghu Kshetra Samsas Granth
Author(s): Charitrashreeji
Publisher: Kumudchandra Jesingbhai Vora
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શ્રી શાશ્વતત્યસ્તવ:
जोयण सयं च पन्ना बिसयरि दीहत्त पिहुलउच्चत्तं ।
वेमाणिय नंदीसर कुंडलरुअगे भवणमाणं ॥१३॥ तीसकुलगिरिसु दस कुरु मेरुवण असीय वीस गयदंते ।
वक्रवारेसु असीइ चउ चउ इसुयार मणुयनगे ॥ १४ ॥ एयाइं असुरभवणट्ठियाई पुव्बुत्तमाणअद्धाई ।।
दलिमित्तो नागाई नवसु वणेसु इओ अद्धं ॥१५॥ दिग्गयगिरीसु चत्ता दहे असी कंचणेसु इगसहसो ।
सत्तरि महानईखें सत्तरिसयं दीहवेपड़े ॥ १६॥ कुंडेसु तिसय असिया वीसं जमगेसु पंच चूलासु ।
इकारस सयसत्तरि जंबूपमुहेसु दस तरुसु ॥१७॥ वट्टवियड़े वीसा कोसतयद्धं च दीहवित्थारा ।
चउदस धणु सयचालीस अहिय उच्चत्तणे सव्वो ॥१८॥ अडदीवि विदिसि सोलस सुहुमीसाणग्गदेवनगरीसु ।
एयं बत्तीससया गुणसटिजुआ तिरिअलोए ॥ १९ ॥ एवं तिहुयणमझे अडकोडी सत्तवण्ण लक्स्वा य ।
दो य सया बासिया सासयजिणभवण वंदामि ॥२०॥ सहि लक्खा गुणनवइ कोडि तेरकोडि सय बिबभवणेसु ।
तियसय विसति इगनवइ सहस्स लक्खतिग तिरिए ॥२१॥ एग कोडिसयं खलु वावन्ना कोडि चउनवइ लक्खा ।
चउचत्तसहस्स सगसय सट्ठी वेमाणि बिंबाणि ॥ २२ ॥ पनरसकोडिसयाई दुचत्तकोडी उडवन्नलक्खा य ।।
छत्तीस सहस असीआ तिहुयणबिंबाणि पणमामि ॥ २३ ॥ सिरिभरहनिवईपमुहेहि जाइं अन्नाई ईत्थ विहियाई ।
देविंदमुणिंदथुआई दिंतु भवियाण सिद्धिसुहं ॥ २४ ॥ Re::2:00:00:ch * इति श्रीशाश्वतचैत्यस्तवः समाप्तः ।

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