Book Title: Kuvalayamala Part 1
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 245
________________ के साथ घर बैठे कुँए का पानी लेकर पाप धोकर स्वर्ग पहुँचा जाय, ऐसा होना चाहिए न? प्र० ऐसा कैसे हो सकता है ? कुँए का जल कोई तीर्थ जल थोड़ा ही है ? उ० तो यह न सही, लेकिन किसी तीर्थ का पानी घर पर मँगवा कर उससे पाप धोकर स्वर्ग जाया जाय ऐसा तो हो सकता है न? किंतु ऐसा तो नहीं मानते, क्यों कि इससे तो तीर्थ को जाना ही निरर्थक हो जाय? फलतः तीर्थजल से पापमल धोने की बात ही नियुक्तिक ठहरती है । (असंगत साबित होती है।) मरे हुए व्यक्ति की हड्डियाँ (अस्थियाँ) तीर्थजल में यह बात वाहियात क्यों ? ऐसी ही अतार्किक बात यह भी है कि, 'कहीं भी मरे हों, उसकी हड्डियाँ गंगा नदी में प्रवाहित करने से उस (मृतात्मा) की सद्गति होती है ।' क्यों वाहियात है ? कारण यह कि - (१) इसमें तो शरीर मृत (मरा हुआ) है, अर्थात उसमें से आत्मा तो कब की उड़ ही गयी है, तो उस उड़ गयी हुई को क्या लेना देना ? (२) अब उस परलोकगत को यह विचार ही कहाँ है कि 'मैं तीर्थजल से पाप धोऊँ । और यहाँ के शरीर में वह स्वयं ही नहीं रहा, तो इस के द्वारा खुद का तीर्थजल से संपर्क भी कहाँ है । तब उस संपर्क और विचार के बिना मल कहाँ से साफ हो ? और सद्गति कहाँ से मिले । (३) इसके अलावा, यह भी तथ्य है कि मरनेवाला तो मरते क्षण ही - पहले से बँधे हुए भवान्तर (अन्यभव) के आयुष्य एवं गति के अनुसार उस गति में चला गया । वह कोई राह देखता नहीं बैठा है कि मेरी अस्थियाँ गंगा में डाली जायँ, उसके बाद आगे बढूँ ? यहाँ का आयुष्य पूरा होनेपर जीव के हाथ की कोई ऐसी बात है ही नहीं। इसमें तो मरकर तुरन्त ही कर्मानुसार रवाना हो ही जाना पड़ता है । फिर, वक्त बीतने के बाद अब अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित करने से क्या मिले ? अन्त में चंडसोम यहाँ : आचार्य महाराज कहते हैं - 'राजन् ! इस तरह मिथ्या वचन से जगत के जीव जिस तरह धोखा खाते हैं उसी तरह चंडसोम ने भी धोखा खाया । अतः उस बेचारे ने अपना सर्वस्व ब्राह्मणों को दान कर के मुंडन करवा कर पाप-मल धोने तीर्थों में घूमना शुरू किया। वह घूमता घूमता यहाँ आ पहुँचा है, और यहाँ बैठा हुआ २३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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