Book Title: Kundkundacharya Charitra
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 10
________________ दिगंबर जैन. छोडी व्यापारी, धंधो तुरतने माटे ग्रहण कर्यो ते लीजें कारण. आ त्रण कारणोथी इतिहासमा जैनोनुं घणु प्रावल्य हतुं, कारणके धर्म संबंधी चळवळ अने सुधारणा संबंधने लईने जैनोनो उपर लखेलो काळ घणोज महतनो हतो एवं इतिहास परथी ठरे छे, ए सिवाय जैन संस्कृत वाङमय-साहित्य दृष्टिथी विचार करतां उपरोक्त काळ घणोज महत्वनो हतो एमा शंका नथी. आ कारणथी तो जैनोने इतिहासमां स्थळ आप्युं होत, तो घणुं सारं हतुं!! ____ अस्तु, उपर निर्दिष्ट करेला इसवी सन पूर्व पांच छ शतकनो अथवा ते पछीना सुमारे एक हजार वर्षना काळमांना जैन धर्मीय महत्व पछी अनेक व्यक्तिओ थई गई. श्रीमहावीर स्वामी सरखा धर्मनुं पुनर्जीवन करनार, जंबुकुमार, जीवंधर, वगैरे सरखा पराक्रमी राजा, गौतम (गणधर-बुद्ध महि), भद्रबाहु, कुंदकुंदाचार्य, उमास्वामी, समंतभद्र, जिनसेन, गुणभद्र, नेमिचंद्र, मानतुंग वगेरे सरखा अनेक उत्कृष्ठ वाडमयना कर्ता, उपदेशक, धर्मग्लानि समये उत्तेजन देनार अथवा निःस्वार्थ एवा पुरुषो उत्पन्न थई गया. आ मोटामोटा नररत्नोए संस्कृत वाङमयनो असंख्य रत्न भंडार धर्म ग्रंथोना रुपमा गुप्तपणे एटलो अघो मूक्यो छे के तेनुं परिशीलन करवाने आजेः-अनं.

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