Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 14
________________ [ ९ ] अर्थात्-'काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, व्याधिग्रस्त को रोगी और चोर को चोर भी न कहे।' क्योंकि यह भाषा कठोर और प्राणियों का उपघात करने वाली, चोट पहुँचाने वाली है। यह सत्यवचन होते हुए भी पाप का बन्धन करने वाली है। _ 'जैसे को तैसा' की नीति कलह की जड़ है। ओह ! गलती हो गई/माफ कीजिये क्षम्य हँ सॉरी आदि शब्द वाक्य लोक-प्रसिद्ध हैं । ये हृदय की सरलता को सूचित करते हैं जबकि 'जैसे को तैसा' की नीति विद्वेष भावना से पनपती है। विद्वेष सब में है। शुरू में पारस्परिक छींटा-कसी ही होती है। किन्तु बाद में वही अग्नि में घृत का काम कर जाती है । बात का बतंगड़ बनने में विलम्ब नहीं लगता । 'तू-तू', 'मैं-मैं' की अहं-वत्ति का विस्तार होता जाता है। उस समय उन्हें कलहपङ्क में लिप्त न होने का सुझाव देना भी अर्थहीन हो जाता है । ___अन्तर्राष्ट्रीय स्तर में भी 'जैसे को तैसा' की नीति घातक ही सिद्ध हुई है। आज विश्वयुद्ध की सम्भावना स्पष्ट है । हमारे राष्ट्र में पञ्जाब आदि प्रदेशों की भी यही स्थिति है। सचमुच, जैसे को तैसा की नीति विध्वंशक है। इससे हमारी पारस्परिक खाइयों को पाटने की अपेक्षा उपेक्षणीय है। इससे तो वे और अधिक गहरी और चौड़ी बनती जाती हैं। इससे तो वैर की परम्परा बढ़ती ही है, घटती नहीं। वैर के यौवन में वृद्धत्व की सम्भावना नहीं रहती है। मनुष्य मर सकता है, लेकिन गैर सदैव जीवित ही रहता है। वैर का उत्पत्तिस्थान 'जैसे को तैसा' की नीति है। क्षमा वीरता है, कायरता नहीं : __ यह कहा गया है कि क्षमा वीरों का भूषण है, कायरों का नहीं है। यद्यपि कहा जाता है, क्षमा कायरता की निशानी है। दोनों ही जन-श्रुतियाँ हैं, किन्तु दोनों में पारस्परिक विरोध है। वास्तविकता के बोध के लिए दोनों का तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। वस्तुतः दोनों का क्षमा का, कायरता के साथ सम्बन्ध स्थापित करना अनुपयुक्त है। परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं है। कायरता मिश्रित सहनशीलता को क्षमाशीलता कभी नहीं कहा जा सकता । लोग कहते हैं, क्षमा वही व्यक्ति करता है, जो अशक्त, निर्बल या डरपोक है किन्तु यथार्थतः ऐसा नहीं है। क्षमाशीलता न तो अशक्तता है, न १. दशगेकालिक सूत्र, ७. १२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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