Book Title: Kranti Ke Agradut
Author(s): Kanak Nandi Upadhyay
Publisher: Veena P Jain

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Page 102
________________ [ 81 ] गाढ भक्ति में आसक्त, हाथों को जोड़े हुए, और विकसित मुखकमल से संयुक्त, ऐसे सम्पूर्ण गण प्रत्येक तीर्थंकर को घेरकर स्थित रहते हैं । अष्ट मंगल द्रव्य अलौकिक सर्व मंगलमय मंगलकर्त्ता धर्म तीर्थेश तीर्थंकर के समवसरण स्थित श्री मण्डप में लौकिक अष्टमंगल द्रव्य शोभायमान होते हैं । जहाँ पर अलौकिक आध्यात्मिक मंगल होता है वहाँ पर लौकिक मंगल गौण स्वयमेव होना सहज है । वे लौकिक मंगल विश्व धर्म सभा में स्थित होकर मानो उद्घोषणा कर रहे हैं कि आठों पृथ्वी में तीर्थंकर भगवान ही सर्वश्रेष्ठ मंगल हैं । सतालमङ्गलच्छत्रचामरध्वजदर्पणाः । सुप्रतिष्टकभृङ्गारकलशाः प्रतिगोपुरम् ॥275॥ आ० पु० अध्याय 22 प्रत्येक गोपुर-द्वार पर पंखा, छत्र, चामर, ध्वजा, दर्पण, सुप्रतिष्ठक (ठौना), भृङ्गार और कलश ये आठ-आठ मंङ्गल द्रव्य रखे हुए थे । समवसरण में अनेक गोपुर में एवं श्रीमण्डप में अष्ट मंगल द्रव्य होते हैं । अकृत्रिम तथा कृत्रिम जिन मंदिर समवसरण की प्रतिकृति होने के कारण अकृत्रिम जिन मंदिर में तथा कृत्रिम जिन मंदिर में अष्ट मंगल द्रव्य होते हैं । भिंगार कलस - दप्पण चामर धय विजय छत्त- सुपइट्ठा । अहठुत्तर सय संखा, पत्तेक्कं मंगला तेसुं ॥1904॥ ति० प० अ० 4 भिगारकल सदप्पणवीयणधयचामरादवत्तमहा । सुपरट्ठ मंगलाणि य अट्ठहियस्याणि पत्तेयं ॥989॥ भृंगारकलशदर्पणवीजनध्वज चामरात पत्रमथ । सुप्रतिष्ठं मङ्गलानि च अष्टाधिकशतानि प्रत्येकम् ॥9891 - त्रिलोकसार - पृ० 753 महाझारी, कलश, दर्पण, पंखा, ध्वजा, चामर, छत्र और ठौना ये आठ मंगल द्रव्य हैं । ये प्रत्येक मंगल द्रव्य 108 + 108 प्रमाण होते हैं । उपरोक्त अष्टमंगल द्रव्य जिस समय तीर्थंकर भगवान उपदेशामृत द्वारा विश्व को मंगलमय करने के लिए मंगल विहार करते हैं उस समय अष्टमंगल द्रव्य को लेकर देव लोग मंगल सूचना स्वरूप आगे-आगे चलते हैं ।

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