Book Title: Khartar Matotpatti Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 4
________________ शास्त्रार्थ में खरतरों का पराजय mernoon विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का जिक्र है कि अजमेर में राजा बीसलदेव चौहान राज करता था। उस समय एक ओर से तो उपकेशगच्छीय वाचनाचार्य पद्मप्रभ का शुभागमन अजमेर में हुआ । आप व्याकरण, न्याय, तर्क, छन्द, काव्य, अलंकार और जैनागमों के प्रखर पण्डित और धुरन्धर विद्वान थे। आपके विद्वतापूर्ण व्याख्यानों से बड़े २ राजा एवं पंडित मन्त्रमुग्ध बन जाते थे। यही कारण है कि आपकी विद्वत्ता की सौरभ सर्वत्र फैली हुई थी। दूसरी ओर से खरतराचार्य जिनपतिसूरि का पदार्पण अजमेर में हुआ, आप वाचनाचार्य पद्मप्रभ की प्रशंसा को सहन नहीं कर सके। भला अभिमान के पुतले योग्यता न होने पर भी आप अपने को सर्वोपरि समझने वाले दूसरों की बढ़ती को कब देख सकते हैं ? उक्त इन दोनों का शास्त्रार्थ राजा बीसलदेव की सभा के पंडितों के समक्ष हुआ। जिसमें वाचनाचार्य पद्मप्रभ द्वारा जिनपति बुरी तरह से परास्त हुआ जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। + + तदा खरतराचार्यः, श्री जिनपति सूरिभिः । सार्द्ध विवादो विदधे, गुरु काव्याष्टकच्छले ॥ श्रीमत्यजयमेाख्ये, दुर्गे वीसलभूपतेः । सभायां निर्जितायेन, श्रीजिनपतिसूरयः ।। उषकेशगच्छचरित्रPage Navigation
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