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मध्यप्रदेशका हिन्दू पुरातत्त्व
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इतनी विस्तृत शिल्प सामग्रीसे स्पष्ट होता है कि आजका यह ग्राम, कलचुरियों के समय में शिल्पसाधनाका अच्छा केन्द्र था, या कलचुरि शिल्प परम्परा के तक्षक यहाँ पर्याप्त संख्या में रहकर, अपनी साधना करते रहे होंगे । कारण यहाँ से पहाड़ समीप ही है और यहाँकी कृतियों में बिलहरीका लाल पत्थर ही अधिकतर व्यवहृत हुआ है । बिलहरीकी ओर शोधकों को ध्यान देना चाहिए |
कामठा
गौंदियासे बालाघाट जानेवाले मार्गपर चंगेरीके टीलेसे इसका मार्ग फूटता है । युद्धकालमें वायुयानोंका यह विश्राम स्थान था । पर बहुत कम लोग जानते हैं कि इतिहास और शिल्पकलाकी दृष्टिसे भी कामठाका महत्त्व है । यद्यपि यहाँपर वास्तुकलाकी उपलब्ध सामग्री अधिक तो नहीं है, और न बहुत प्राचीन ही है, पर जो भी है, उनका अपना महत्त्व है । पुरातन शिल्पकला की कड़ियोंको समझने के लिए इनकी उपयोगिता कम नहीं । कामठाके विद्यालयके उत्तरकी ओर १ || फर्लांगपर उत्तराभिमुख एक शैत्र-मन्दिर है । दूरसे तो वह साधारण-सा प्रतीत होता है । निकट जाने पर ही उसके महत्त्वका पता चलता है । यद्यपि वह तीन सौ वर्षों से ऊपरका नहीं जान पड़ता, जैसा कि उसकी रचना शैलीके सूक्ष्मावलोकनसे परिज्ञात होता है, पर इसमें पुरातन शैलीका अनुकरण अवश्य किया गया जान पड़ता है । मन्दिरकी नींव ऊपर होसे स्पष्ट दिखलाई पड़ती है । ऐसा लगता है, जैसे मजबूत चौतरेके ऊपर ही इसका अस्तित्व हो । मन्दिर सभामण्डप सहित २३x२० फ़ीट ( लम्बा चौड़ा ) है । सभामण्डप २०x१६ फीट है । मध्य भागकी लम्बाई-चौड़ाई ११८ फीट है । नींव और सभामण्डपके बाह्य भागमें जो पत्थर लगे हैं, वे मेग़नीज हैं । मण्डपके ठीक मध्यभागमें नांदिया है । सभामण्डप दश स्तम्भोंपर आधृत है मन्दिरका बाह्य भाग भीतरकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण व सौन्दर्य
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Aho ! Shrutgyanam