Book Title: Khajuraho ka Jain Puratattva
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Sahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व वस्तुतः चन्देल शासकों के काल में ही खजुराहो का प्रमुख राजनीतिक और कला केन्द्र के रूप में विकास हुआ। चन्देल शासकों ने लगभग नवीं शती ई० में अपना राजनीतिक जीवन कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार शासकों के सामन्तों के रूप में प्रारम्भ किया और शीघ्र ही उत्तर भारत की प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उनका अभ्युदय हुआ।' चन्देल शासकों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न प्रमाण मिलते हैं। खजुराहो के दो लेखों में इन्हें चन्द्रात्रेय और दुधइ के एक लेख में चन्द्रेल्ल कहा गया है। चन्देल नाम से इनका उल्लेख सर्वप्रथम चाहमान शासक पृथ्वीराज तृतीय के मदनपुर लेख और कल्चुरी शासक लक्ष्मीकर्ण के बनारस लेख में हुआ है । खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर के विक्रम संवत् १०११ (९५४ ई०) के अभिलेख में चन्देलों का सम्बन्ध ऋषि अत्रि तथा उनके पुत्र चन्द्रात्रेय से जोड़ा गया है । परमदिदेव के विक्रम संवत् १२५२ (११९५ ई०) के बघारी (या बटेश्वर) शिलालेख में भी चन्देलों की उत्पत्ति अत्रि, चन्द्रमा तथा चन्द्रात्रेय से बतलाई गयी है । विभिन्न साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि चन्देलों की उत्पत्ति चन्द्रमा से बतलाकर उनके चन्द्रवंशी क्षत्रिय होने का संकेत किया गया है।
___ धंग के विक्रम संवत् १०११ (९५४ ई०) के खजुराहो लेख में प्रथम चन्देल शासक का नाम नन्नुक (ल० ८३१-८४५ ई०) बताया गया है । लेख में नन्नुक को नृप और महीपति कहा गया है । एक मान्यता के अनुसार नन्नुक ने संभवतः प्रतिहार शासक रामभद्र के बुरे दिनों में चन्देल राज्य की स्थापना की थी। दूसरी मान्यता के अनुसार वह एक स्थानीय सामन्त मात्र था और उसका दूसरा नाम या विरुद चन्द्रवर्मा था। नन्नुक का उत्तराधिकारी उसका पुत्र वाक्पति (८४४-८७० ई०) हुआ । इसने विन्ध्य की ओर अपनी शक्ति का विस्तार किया। जयशक्ति और विजयशक्ति (ल० ८६५ से ८८५ ई०) वाक्पति के दो पुत्र थे, जिनका कई चन्देल लेखों में उल्लेख हुआ है । वाक्पति की मृत्यु के पश्चात् जयशक्ति और उसके बाद उसका छोटा भाई विजयशक्ति शासक हुआ । जयशक्ति ने शासन प्रबन्ध पर अधिक ध्यान दिया जबकि विजयशक्ति ने राजनीतिक गतिविधियों में विशेष रुचि ली। महोबा के एक लेख के अनुसार जयशक्ति ने अपने नाम पर राज्य का नाम जेजाकभुक्ति रखा । विजयशक्ति के पश्चात् उसका पुत्र राहिल (८८५-९०५ ई०) शासक हुआ। इसके शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना नहीं हुई । स्थानीय लेख में उसे वीर, योद्धा और शत्रुहन्ता बताया गया है ।
१. विस्तृत चन्देल इतिहास के लिए द्रष्टव्य : दीक्षित, आर० के०, चन्देल्स ऑफ जेजाकभुक्ति
ऐण्ड देयर टाइम्स (पी-एच० डी० थीसिस, लखनऊ विश्वविद्यालय, १९५०); बोस, एन० एस०, हिस्ट्री आफ चन्देल्स, कलकत्ता, १९५६; मित्रा, एस० के०, अर्ली रूलर्स ऑफ खजुराहो, कलकत्ता, १९५८; पाठक, विशुद्धानन्द, उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास,
वाराणसी, १९७३, पृ० ३७२-४२७ । २. एपिग्राफिया इंडिका, खण्ड-१, पृष्ठ १२४, १४१; खण्ड-२, पृष्ठ ३०६; इंडियन एन्टिक्वेरी,
खण्ड-१८, पृष्ठ २३६-३७, आकियोलाजिकल सर्वे ऑव इंडिया रिपोर्ट (ए० कनिंघम), खण्ड-२१, पृ० १७४; मिराशी, वी० वी०, कलचुरि चेदि एरा।
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