Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
सन्देश
-शुभकामना
शिवनाथसिंह
निदेशक, कॉलेज शिक्षा राजस्थान, जयपुर
आत्माराम दि० २७-३-१९८२
नई दिल्ली मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि श्री जै० श्वे०
दि० ३१-१०-८० ते. मा० हि० संघ के मानद मंत्रीजी श्री केसरीमलजी
श्री केसरीमलजी सुराणा से साक्षात्कार होने का तो सुराणा का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है । मैं इस अन
अवसर मुझे नहीं मिला, परन्तु जो कुछ भी मुझे उनकी संस्थान से सुपरिचित हूँ। श्रीमान सुराणाजी के निर्देशन में
समाज सेवाओं के विषय में ज्ञात हुआ, उससे मैं बहुत प्रभा
पर यह संस्थान शिक्षा के प्रचार-प्रसार का अभूतपूर्व कार्य
वित हुआ । आज की दुनिया में ऐसे निःस्वार्थी व निष्ठावान सम्पन्न कर रहा है।
समाजसेवक गिने-चुने ही रह गये हैं। यह बड़ी उत्तम बात मैं समारोह की सफलता हेतु हार्दिक शुभकामनाएं
है कि उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है, और प्रेषित करता हूँ एवं उनकी दीर्घायु की मंगल कामना
इस अवसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ उनकों भेंट किया जावेगा। करता हूँ।
-शिवनाथसिंह
इस समारोह की सफलता के लिये मैं हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
-आत्माराम
२८ जैनेन्द्रकुमार
पूर्वोदय प्रकाशन ७/८-दरियागज, नई दिल्ली
दि. ३१-१०-८० कर्म और धर्म का अभिन्न सम्बन्ध है । लेकिन कर्म से व्यक्ति जितना जागरूक रहता है, उतना ही वह धर्म से अछूता अथवा ऊपर-ऊपर में छाया रहता है। लेकिन श्री केसरीमलजी सुराणा इसके अपवाद हैं। सुराणाजी जितने कर्मयोगी हैं, उतने ही धर्म से ओत-प्रोत एवं चरित्र के धनी हैं। कर्म से भी अपने लिये नहीं दूसरों के लिए समर्पित है। इसलिए वे अनासक्त योग के साधक है।
सुराणाजी के मन में आध्यात्मिक एवं नैतिक समाज की एक कल्पना है । एक स्वप्न है। इसके लिए वे जीते व सदैव कर्मशील रहते हैं । इस दृष्टि से उनके द्वारा राणावास में संस्थापित सुमति शिक्षा सदन एवं उसके इर्द-गिर्द विविध शिक्षण संस्थान नव शिक्षा संस्थाओं के लिए समर्पित जीवन का उदाहरण हैं।
अभिनन्दन के इस अवसर पर कृपया मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें। मुझे आशा ही नहीं विश्वास है, उनका सेवा, साधना और त्याग से संचित व्यक्तित्व समाज को आध्यात्मिक प्रेरणा एवं सम्बल प्रदान करता रहेगा।
-जैनेन्द्रकुमार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org