Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 651
________________ परिशिष्टम्-६ ६१३ क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ० सं० क्र०सं० विशिष्टशब्दादिकम् पृ०सं० ९०१. संशब्दनम् २१६ ९२५. समुदायार्थः ३२७ ९०२. संशयनिवृत्त्यर्थम् २७५ ९२६. समृद्धि: २३३,४६८ ९०३. संसिद्धिः ४०५ ९२७. सम्प्रदायः ११,१४,३७, ९०४. संस्पर्शः ३००,४६६ ९०५. सकर्मका: २५६/९२८. सम्प्रसारणम् १,२५,३१,३३, ९०६. सकृद्गतन्यायः ३८,१३२,१६३,२८२,२८९, ९०७. सत्ता २९०,४१३,४७५,४८४ ९०८. सन्दर्भ: | ९२९. सम्प्रसारणपादः १४८ ९०९. सन्देहः १४९३०. सम्भवदर्शनार्थम् ८१,११५ ९१०. सन्धिलक्षणम् ९३१. सर्वादेशः ९११. सन्ध्यक्षरग्रहणं २९१ ९३२. सर्वादेशविधिः ४०६ सुखपाठार्थम् ९३३. सर्वापहारी लोपः ३,६२, ९१२. सन्ध्यक्षरम् ३७, २१४,२९१ २८४,२९९ ९१३. सन्ध्यक्षरे १५२,४८५ ९३४. सवाक्याध्याहाराणि ४२५ ९१४. सन्निपातलक्षणपरिभाषा ६४/९३५... सस्मरु: २५८ ९१५. सन्निपातलक्षणो विधिः ६३, ९३६. सादृश्यपक्षविलम्बनम् १६८ २९९ ९३७. . साधनं हि क्रियां सन्वद्भावः २२४, २४१/ निवर्तयति २५६ ९१७. सन्वद्भावादिकार्यम् २७२ ९३८. साध्यभेदः ३१८ ९१८. समञ्जसम् ४५६ ९३९. सानुबन्धः ९१९. समर्थनम २१४.९४०. सामानाधिकरण्यनिर्देश: ६५ ९२०. समस्तलापार्थम् ८४,९४१. सामान्यम् १३९ ९२१. समाधिः १२६,१३५.१३७| ९४२. सामान्यार्थम् २१९, २२१ ९२२. समाहारद्वन्द्रः ३०४,४५९/ ९४३. सामीप्यम् २५० ९२३. समुच्चयन ३९२/ ९४४. सामीप्यार्थे ४५१ ९२४. समुदायविवक्षा २९८ ९४५. सार्वधातुकप्रतिपत्त्यर्थम् ७० ९१६. १४६ ८४ १४

Loading...

Page Navigation
1 ... 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662