Book Title: Karunatma Krantikar Kirti Kumar
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 53
________________ Dt. 19-07-2018.48 २ . कीर्ति-स्मृति . | छोड़ देना भी उपयुक्त है ? परीक्षा पूरी करने के बाद ही इस कार्य में लग जाना व्यावहारिक तो है, पर इसके सामने शंकराचार्य बारबार कहते दिखाई देते हैं - -- "या दिने विवज्या सा दिने प्रवज्या ।" साथ साथ एक दूसरी बात भी है- मेरी वृध्य भक्तहृदय माता और मेरे उदार निःस्वार्थी बड़े भाई भी इस दुःख से द्रवित होकर गरीबों के किसी सेवाकार्य में लगना चाहते हैं, और कहीं भी मेरे साथ रहकर ! इसके लिए क्या, कैसे करना यह भी सोचना है-उरुली आश्रम जैसे किसी आश्रम में सेवा दें या अन्य व्यवसाय कर साथ साथ काम करें? - इन प्रश्नों के बारे में आप हो सके तो थोड़ा-सा प्रकाश डालें। जैसा कि आगे लिखा, प्रत्यक्ष तो अभी आप के पास आ नहीं सकू ऐसी विवशता है। . दिवंगत भाई आपके पास आना चाहता था, पर कभी ऐस अवसर ही नहीं आ सका । बीचमें पू. बालकोबा के पास वह डेढ़ महीना रहा था और तब से हिंसक मनोवृत्ति से मुक्त होकर परिवर्तित हो गया था । वह बालकोबाजी से प्रभावित हुआ था और बालकोबाजी उससे प्रसन्न । अभी उरुली से उन्होंने लिखा है ચિ. કીર્તિના સ્વર્ગવાસના ખબર સાવ જ અનપેક્ષિત મળ્યા xxx ચિ. કીર્તિ અહિં રહેલો ત્યારે રોજ અમારી જોડે પાયખાના સફાઈ માટે નિયમિત રીતે આવતો અને તે વેળા રા કલાક અમારું સફાઈનું કામ ચાલતું તેટલું એ પૂરું કરતો. એક વેળા શૌચ કેટલા વધારે સંખ્યામાં કોણ ઉપાડે છે એની હરિફાઈ રાખેલી તેમાં એણે મારા સ્મરણ પ્રમાણે ૪૦૦ શૌચ ઉપાડેલા. એનો બીજો નંબર આવેલો. આશ્રમમાં રહી સેવા કરવાનું એણે મને જણાવેલું, પણ મેં એને કહ્યું હમણાં ભણતર પૂરું કર પછી જોઈ લેવાશે. એણે કલકત્તામાં પોતાનું શરીર ઘસી નાખ્યું. કીર્તિના જે ગુણો છે તેનું સ્મરણ કરી, તેના વિયોગના દુઃખને સાવ ભૂલવાનો પ્રયત્ન કરશો... મારા તરફથી તેની માતાને સાંત્વના આપશો અને તમે પણ શાંતિ शो..." લિ. બાળકોબા ભાવે अस्तु । मैं ने बहुत ही अधिक लिख दिया है, अब आपसे यथा समय पत्रोत्तर देने की प्रार्थना करने के उपरान्त एक और प्रार्थना कर सकता हूँ-दिवगंत कीर्ति की आत्मा की शांति के हेतू आप क्षणभर परमात्मा से प्रार्थना करेंगे? आपकी प्रार्थना उसे भी पहुंचेगी और हमें भी दिशादर्शन कराएगी। आप के भव्य गुणों का मुझे स्पर्श हो इस मनीषा के साथ _ नम्रता का अमीप्सु प्रताप के प्रणाम । (बाबा विनोबाजी का संक्षिप्त पर मर्मयुक्त पत्रोत्तर) "परतापराय, पत्र मिला । छोटे भाी की करुण कहानी पढ़ी । उसमें से आध्यात्मिक सवाल तुम्हें सुझे, उसकी चर्चा पत्र में नहीं करना चाहता । कभी मिलोगे तब चर्चा हो सकेगी। जानेवाला गया, पीछे रहनेवालों को अपना कर्तव्य करना होता है।" - वीनोबा - इन सभी महत्पुरुषों के उपरान्त स्वजनों, साथियों, मित्रों के अश्रुप्रवाहभरे प्रतिभाव पत्र तो लगातार आते रहे। बड़ों और छोटों-सभी का इतना प्रेम पानेवाले इस युवा करुणात्मा क्रान्तिकार के लोहचुंबकमय जीवन का रहस्य क्या था ? उसकी निराली कही गई-मानी गई दास्तान क्या थी? . इस प्रारंभिक दर्शन के पश्चात् अगले प्रकरण में देखेंगे उसके इस चुंबकीय, प्रेरक जीवन का, संक्षेप में भी सही, आद्यान्त दर्शन । Camera (48)

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