Book Title: Karmgranth Vivechan
Author(s): Devendrasuri, Bhagwandas Harakhchand
Publisher: Bhogilal Jivraj
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अणचउवीसविरहिआ सनरदुगुच्चा य सयरि मीसदुगे । सतरसओ ओहि मिच्छे,पजतिरिआ विणु जिणाहार ॥ ८ ॥ विणु निरयसोल सासणि, सुराउ अणएगतीस विणु मीसे । ससुराउ सयरि सम्मे, बीअकसाए विणा देसे ॥ ९ ॥ इअ चउगुणेसु वि नरा, परमजया सजिण ओहु देसाई । जिणइक्कारसहीणं नवसय अपज्जत्ततिरिअनरा ॥ १० ॥ निरयव्व सुरा नवरं, ओहे मिच्छे इगिंदितिगसहिआ । कप्पदुगे वि अ एव, जिणहीणा जोइभवणवणे ॥ ११॥ रयणु व्व सणंकुमाराइ आणयाइ उज्जोअचउरहिआ । अपज्जतिरिअव्व नवसयमिगिदिपुढविजलतरुविगले ॥ ॥१२॥ छनवइ सासणि विणु सुहुमतेर केइ पुण बिंति चउनवई । तिरिअनराऊहिं विणा, तणुपज्जत्तिं न जति जओ ।। १३ ॥
ओहु पणि दितसे गइतसे जिणिक्कारनरतिगुच्च विणा । मणवयजोगे ओहो, उरले नरभ'गु तम्मिस्से ।। १४ ॥ आहारछग विणोहे, चउदससउ मिच्छि जिणपणगहीणं । सासणि च उनवइ विणा, तिरिअनराऊ सुहुमतेर ॥ १५ ॥ अणचउवीसाइ विणा, जिणपणजुअ सम्मि जोगिणा सायं । विणु तिरिनराउ कम्मे, वि एवमाहारदुगि ओहो ॥१६॥ सुरओहो वेउव्वे, तिरिअनराउरहिओ अ तम्मिस्से । वेअतिगाइमबिअतिअकसाय नव दु चउ पंचगुणा ॥ १७ ॥ संजलणतिगे नव दस, लोहे चउ अजइदुतिअनाणतिगे । बारस अचक्खुचक्खुसु, पढमा अहखाय चरमचऊ ॥ १८॥

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