Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ यह किया कि पारणे के दिन पकाये हुए चावलों के अतिरिक्त कुछ नहीं लेना। उन चावलों को भी इक्कीस बार पानी में धोकर खाना । यों तामली तापस ने यह तप लम्बे समय तक चालू रखा। इस ताप से शरीर अस्थि-कंकाल मात्र रह गया। जब उसे लगने लगा कि अब मेरा शरीर अधिक दिन नहीं टिक सकेगा, तब पादपोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया । उन दिनों उत्तर दिशा के असुरकुमारों की राजधानी बलिचंचा नगरी में कोई इन्द्र नहीं था। पहले वाला इन्द्रच्यवित हो गया था। वहाँ के देव ने तामली तापस को निदान कराके अपने यहाँ उत्पन्न होने को ललचाया। अतः विशाल रूप में वहाँ आये और अपने यहाँ इन्द्ररूप में उत्पन्न होने के लिए निदान करने की प्रार्थना की। परन्तु तामली तापस उनकी प्रार्थना को सुनी-अनसुनी करके निष्काम तप में लीन रहा। देवगण निराश होकर अपने-अपने स्थान पर चले गये। इधर तामली तापस आठ हजार वर्ष की आयु को पूर्ण करके दूसरे स्वर्ग में इन्द्र के रूप में पैदा हुआ। यह है बाल तप से भी देवायु बंध का उदाहरण । (35) - भगवती श. 3/1 देव आयुष्य में आंबावती नगरी के श्रावक विजयपाल के चार पुत्र थे। चारों विनीत, अध्ययन दक्ष और व्यापार में कुशल थे। सेठ की प्रेरणा से चारों धर्मप्रिय बन गये । पिता द्वारा कार्य संभाल लेने के बाद श्रावक विजयपाल लगभग निवृत्त हो गया। वहाँ सर्वज्ञ ज्ञानभानु अणगार पधारे। सेठ विजयपाल ने पुत्रों सहित दर्शन किये। प्रवचन सुना । प्रवचनोपरान्त सेठ ने पूछा - मुनि प्रवर ! मेरे ये चारों पुत्र जब गर्भ में आये, तब इनकी माता ने हर बार स्वप्न देखा । चारों पुत्रों के गर्भ में आने के समय क्रमशः देव-भवन, ग्रह मण्डल, व्यन्तर- भवन और देव विमान का स्वप्न देखा था। इसका क्या कारण है ? मुनि विजयपाल ! ये चारों जहाँ-जहाँ से आये हैं वहाँ वहाँ के स्वप्न इनकी माता ने देखा है। 280 कर्म-दर्शन

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298