Book Title: Kamghat Kathanakam
Author(s): Gangadhar Mishr
Publisher: Nagari Sahitya Sangh

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कामघट कथानकम श्रुत्वान्नचिन्तातुरो मंत्री तमुवाच-एवं मा वद सर्वोदन्तक्षयकरी क्षुधा लग्नास्ति, यत्कथितं पूर्व बृद्धःस्तद्यथा- .... यह विचार कर मंत्री उस कामघटको राक्षसको देकर और राक्षस से दिया हुआ दण्ड लेकर आगे चला। अब जाते हुए उस मंत्री को दूसरे दिन भूख लगी, तब उसने दण्ड, से कहा-हे दण्ड, तुम मुझे खाना दोगे या नहीं ? दण्डने कहा भोजन देने की मेरी शक्ति नहीं है। अब इसतरह भूख की पीड़ा में भोजन न देने की बात को सुनकर अन्न की चिन्ता से दुःखी मन्त्रीने दण्ड को कहा-ऐसा मत बोलो, क्योंकि मुझे सभी बात को बिगाड़ने वाली भूख लगी। जिसको पूर्व बृद्धोंने कहा है। जैसे आदौ रूपविनाशिनी कृशकरी कामाग्निविध्वंसिनी, प्रज्ञामंदकरी तपःक्षयकरी धर्मस्य निर्मूलनी । पुत्रभ्रातृकलत्रभेदनकरी लज्जा . कुलच्छेदिनी, सा मां पीडति सर्वदोषजननी प्राणापहारी क्षुधा ॥५१॥ भूख होने पर ( अन्न न मिलने से ) पहले प्राणी का चेहरा फीका पड़ जाता, शरीर दुबला-पतला हो जाता, कामाग्नि नष्ट हो जाती, बुद्धि कम हो जाती, तपस्या का क्षय हो जाता, धर्म जड़ से उखड़ जाता, पुत्र, भाई, स्त्री से मन-मुटाब हो जाता, वही भूख मुझे सता रही है जो सभी दोषों की माता है और प्राणों को हरने वाली है।।२१॥ मानं मुञ्चति गौरवं परिहरत्यायाति दीनात्मतां, लज्जासुत्सृजति श्रयत्यदयतां नीचत्वमालम्बते । भार्याबन्धुसुहृत्सुतेष्वसुकृती नानाविधं चेष्टते, किं किं यन्न करोति निन्दितमपि प्राणी क्षुधापीडितः ॥ ५२ ॥ भूख से तड़पता हुआ प्राणी, मान-मर्यादा और गौरव को छोड़ देता है, दीन हो जाता है, लज्जा छोड़कर निर्दयता को पकड़ता है और नीचवृत्ति (निंदनीय कर्म) को धारण करता है, स्त्री, भाई, मित्र और पुत्रों में अनेक तरह अधर्म (निंद्य-पाप ) कर बैठता, अधिक क्या ? वे कौन ऐसे निदित कार्य हैं जो भूख से तड़पते प्राणी नहीं करते अर्थात् भूख से छटपटाते हुए व्याकुल प्राणी सभो तरह के पाप करते देखे जाते हैं ।। ५२ ॥ For Private And Personal Use Only

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