Book Title: Kalplatavatarika Author(s): Amrutsuri Publisher: Jain Sahityavardhak Sabha View full book textPage 9
________________ [8] . सञ्चालन कोण करे छे ? भने केवी रीते करे छ ? ए सम्बन्धमा जुदा जुदा दार्शनिको निज मति प्रमाणे अनेक विचारणा करे छे, अने छेवटे थाकीने कोई एक तत्त्वने आगळ करीने तेमां मतिने विश्राम करावे छे. काळ-स्वभाव-नियति-कर्म अने पुरुषार्थ एम पांच विश्वतन्त्रना सञ्चालक छे. (1) काळ-जगत् कानाधीन छे, कोई कार्य एवं नथी के अनु सञ्चालन काळ न करतो होय. काळ वस्तुने जन्म प्रापे छे, काळ वस्तुने फेरवे. छे अने काळ वस्तुने नष्ट करे छे. जिनपति-नरपति वगेरे पण काळे थया अने काळे गया, ऋतुना फेरफारो कान्नु महत्त्व जणावे छे. आरानी व्यवस्था भने युगनी विचारणा कानधीन छे ए स्पष्ट छे. बाल्यादि अवस्थामां काळ प्रधान छे. श्राम केटलाक दार्शनिको काळ्ने सर्व कार्यनो कर्ता मानीने विरमी नाय छे. . . ___(2) स्वभाव-स्वभाव, प्रकृति एज सर्व कार्य करे छे एम माननारा कहे छे-के गमे तेटलुं करो पण जेनो जेवो स्वभाव होय एवुज कार्य थाय छे, कलाको सुधी अग्नि उपर राखो पण कोरडु मग सीझशे नहिं कारणके तेनो ते स्वभाव नथी. माटीमाथी घट थाय छे अने वस्त्र तन्तुओथी थाय छे, ते स्वभावने कारणेज. मोरना पीछाने कोण चीतरे छे ? स्त्रीने दाढीमूछ केम ऊगता नथी ? हथेलीमां के कपाळमां वाळ केम नथी ? पक्षीमो आकाशमां अविरत ऊडी शाथी शके छ ? माछलीश्रो शाथी पाणीमा विहरे के ? आ सर्व स्वभावाधीन छे. ए प्रमाणे स्वभावषादी सर्वत्र स्वभावने ज भागळ करे छे.Page Navigation
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