Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ प्रमाणानामुदाहरणानां च गद्यानामकाराद्यनुक्रमः / 50 15 "वीतरागा अपि सरागवत्" 1176 वीत्त-इति / "अचउपसर्गात्तः" इति तत्वम् / [पा.सू. 7 4 47] 7 25 वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टा अक्लिष्टाः // [पा.यो.द. 15] 32 13 वृत्तेऽस्मिन् महाप्रलये धरणीधारणायाधुना त्वं शेषः / [हर्षचरितम्] 159 20 "व्यवहितार्थप्रत्ययं क्लिष्टम् // [वामनका. सू. 1 21] 14 26 शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः // [पा.यो.द. 1 9] 32 15 "शब्दवैरकलहाभ्रकण्वमेघेभ्यः करणे' [पा.सू 3 1 15] 4 20 "शून्येभ्य एव धर्माः शन्याः प्रभवन्ति धर्मेभ्यः'' शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः // [पा.यो.द. 2 32] 32 2 श्रुतितुल्यत्वेन यन्माधुर्यम् एष श्रुत्यनुप्रास एव इति भोजराजः __ 91 1. “षष्ठी चानादरे" [पा.सू. 2 3 38] 79 25. सप्तभ्यां चोपपीडरुधकर्षः [पा.सू. 3 4 49] 283 17 'सप्तम्युपमानपूर्वपदस्योत्तरपदलोपश्च' “अनेकमन्यपदार्थे" (पा.सू. 2 2 24] 12 . “सम्भवे व्यभिचारे च सति विशेषणविशेष्यभावो न्याय्यस्तत्समासो वा" 19 18 सम्भावनया[नायां] लिङ् / “उपसंवादाशङ्कयोश्च' // [पा.सु. 3 4 8 114 टि. 1 "सर्वविज्ञानेषु चित्तवृत्तिनिरोधे व्युत्थानावस्थायां च" 51 13 सर्व वाक्यं सावधारणम् इति न्यायः 26. 5 "सर्वादीनि सर्वनामानि". [पा.सू. 1 1 27] 74 5 संज्ञायां कन् [पा.सु. 4 3 147] 315 28 "साधयवधाभ्यां प्रत्यवस्थानं जातिः" [गौ.न्या.सू. 1 2 18] 64 3 सुप्सुपा ‘सह सुपा” [पा.सु 2 1 4] 19 19 'सोऽचि लोपे चेत् पादपूरणम्" . .. [पा.सु. 6 1 134] 37 26 स्थिरसुखमासनम् // [पा.यो.द. 2 46] 324 "[स्त्ररित जितः) कञभिप्राये क्रियाफले' [पा.सू. 1 3 72] 7 6 स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः॥ [पा.यो.द. 2 54] 326 "हेतौ" [पा.सू. 2 3 23 / ] 3 टि. 26

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