Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ रहा हूँ। रात-भर मैं बरसात में भीगा हूँ । मुझे बुखार हो रहा है। तुम्हारे पास एक शॉल है। भगवान के नाम पर इसे मुझे दे दो ।' उस आदमी के दिल में न जाने क्या विचार आया कि उसने ओढ़ी हुई शॉल के दो टुकड़े किए, आधा उस गरीब आदमी को दे दिया और आधा खुद ने ओढ़ लिया । बात यहीं खत्म नहीं हो गई। रात को उसने एक सपना देखा । आज रात के सपने में पहली बार भगवान आये । वह यह देखकर दंग रह गया कि भगवान ने वही शॉल ओढ़ रखी है जो उसने सुबह गरीब को ओढ़ाई थी । उसने भगवान से पूछा 'भगवन् !, आपने यह आधी शॉल ही क्यों ओढ़ रखी है?' भगवान ने कहा, 'जितना तूने चढ़ाया, उतना मुझ तक पहुँच गया' । भक्त और भगवान के बीच भाव यही हो कि हे प्रभु! मेरा जीवन तो तुम्हारे मंदिर का एक चिराग़ है। तुम अगर इसे जलाए रखना चाहते हो तो जलाओ और बुझाना चाहते हो तो बुझाओ । कोई किसी को कुत्ता कहेगा तो उसे बुरा लगेगा, पर यह तो खाता ही ऐसा है, मजार ही ऐसी है कि जहाँ हर आदमी अपने आपको कुत्ता बनाकर पहुँच रहा है । कभी संत हसीद ने कहा था कि जब हम प्रभु का नाम भजते हैं, तब तो हम इंसान कहलाने के कुछ योग्य होते हैं, बाकी तो हमसे तो वे कुत्ते ज्यादा अच्छे हैं जो मालिक की रोटी खाकर मालिक की हाजिरी बजाते हैं I १०८ कबीरा कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नांव । गले राम की जेवड़ी, जित खेंचे तित जांव ।। यूँ तो हर आँख यहाँ बहुत रोती है, मगर हर बूँद अश्क नहीं होती है। देखके रो दे जो जमाने का गम, उस आँख से गिरा अश्क, अश्क नहीं, मोती है ।। योग तो जीने की कला है अपने प्रति भी, औरों के प्रति भी । Jain Education International For Personal & Private Use Only कैसे जिएँ मधुर जीवन www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122