Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 5
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 474
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: समकित सूधउं पालता; अति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०७८१. (+) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. ईस ग्रंथ के पत्रांक १ से ७ है. किन्तु प्रत देखने से प्रारंभ अपूर्ण प्रतीत हो रहा है. अतः काल्पनिक रूप से प्रथम व अंतिम पत्र को २ एवं ८ पत्रांक दिया हुआ है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४४६-५४). जैन सुभाषित*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०७८२. (+#) श्रीपालनृप कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४४१-४९). श्रीपालराजा कथा, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइं नवपयाइं०; अंति: मंगलावली दद्यात्, ग्रं. २३०. २०७८३. चौवीसदंडकगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(४)=११, पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक लिखा है., जैदे., (२४४११, ५४१३-१७). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पास जिणेसर; __ अंति: (-), प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २०७८४. (+) सांबप्रद्युम्न रास, संपूर्ण, वि. १७२६, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४११.५, १४-१५४३७-४१). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: एम भणै संघ सुजस जगीस, खंड-२, ढाल २१, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. २०७८५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७८३, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६, पठ. मु. देवराज; श्रावि. धनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४३-४७). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंद संथुण्या. २०७८७. मैणरेहानी चोपड़, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४१ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १६४३८-४३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवो मांस दारु थकी; अंति: (-), अपूर्ण. २०७८८.(+) ऋविदत्तारास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ७४ से ५१८ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४१-४९). ऋषिदत्तासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. २०७८९. संग्रहणी सूत्र की अवचूरि व जैन गाथा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, २२-२३४६६-७१). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी की अवचूरि, पृ. १अ-१५आ. बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तिष्ठति नारकादिभवे; अंति: शशांकेन निर्मिता. २. पे. नाम. जैन गाथा सह अवचूरि, पृ. १५आ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अलग-अलग गाथा २ तक है. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. जैन गाथा की अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण. For Private And Personal Use Only

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