Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 23
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 359
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४६ ,י www.kobatirth.org आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंति: सूर श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा. पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अड्ड, अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. ५. पे. नाम. भयहर स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि परमेट्ठिमंतसारं सारं अंति आरुग्णं देह सुहपन्नो, गाथा- ७. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ, जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य वि. १४वी आदि दोसावहारदक्खो नालिया; अंति जिणप्पहसूरि०न पीडति गाथा १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. ९अ ११अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ११अ १३अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ८. पे. नाम महावीरसमसंस्कृतवृहस्तवन, पू. १३अ १४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ९. पे नाम महावीरचरित्र, पृ. १४आ. १६अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. יי १०. पे. नाम. नवतत्वप्रकरण, पृ. १६अ - १७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५३. ११. पे नाम. जीवविचारप्रकरण, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा - ५६. १२. पे. नाम. दंडकविचार लघुसंग्रहणी, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठे चौबीस जिणे तस्सुत्त अति लहिया एसा विनत्ति " 1 अप्पहिआ गाथा ४४. १३. पे. नाम संग्रहणीप्रकरण, पृ. २०अ २८आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिङ्ग अति जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९१. ९८०६३ (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. २६ प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१०.५, ११४३०-४०). + बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताइं ठिङ, अति जा वीरजिण तित्वं, गाथा- ३१५. ९८०६४ (०) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण वि. १७७३ आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल, सावरनगर, प्रले. मु. नेमचंद्र (गुरु उपा. रामचंद्र गणि); गुपि. उपा. रामचंद्र गणि; अन्य. मु. उत्तमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१०.५, ८X२८-३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार - २२, श्लोक-१००. 7 १. पे. नाम. षड्दर्शनश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी षट्दर्शनविचार. षडदर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: प्रथमं जिनमते श्वेतांबर, अंति: १६ एवं ३६ पाखंडिनः. २. पे. नाम. प्रत्याख्यान वालावबोध, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रत्याख्यानबालावबोध. ९८०६५ (+) षडदर्शन श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३ - १ (१२) = १२, कुल पे. २६, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १७- १९६३-६६). For Private and Personal Use Only

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