Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५
४१५ कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६२४०३. (+) तत्त्वसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१८(१ से १७,११०)=१२८, प्रले. मु. सुखराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., दे., (२५.५४१४, ११४३६). तत्त्वसारोद्धार, मु. हुकममुनि, मा.गु., गद्य, वि. १९१९, आदिः (-); अंति: हुकम० आतम लाहाव, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं., कषाय वर्णन अपूर्ण से है.) ६२४०४. (+) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले.स्थल. कलकत्ता,
प्रले. श्राव. शितलसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१३, ८४३०).
__ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अति: सफल फली मन आस. ६२४०५. (+#) ज्ञाताधर्मकथासूत्र की कथा, अपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ९७-२(२ से
३)+२(४५,५९)=९७, ले.स्थल. नवानगर-हालारदेश, प्रले. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.सं. १७७३ में जिर्णगढ में लिखित प्रत से प्रतिलिपि करने का उल्लेख मिलता है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२,१६४३७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नामा नगरी; अंति: पहुता तेणे कहीउं, (पू.वि. मेघकुमार की
कथा के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ६२४०६. (+) कर्मग्रंथ-यंत्र १ से ५, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ९४-२(२०,४८)=९२, कुल पे. ५,
ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३३). १. पे. नाम. प्रथमकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, रा., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रते; अंति: अंतराय कर्म बांधे. २. पे. नाम. द्वितीयकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. २१अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: १३ अथवा १२ विच्छेद. ३. पे. नाम. तृतीयकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. २९अ-३६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: श्रीवर्धमान जिनचंद; अंति: तिर्यंचआउ एवं १५
हीन. ४. पे. नाम. चतुर्थकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. ३७अ-४७आ-४९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. शतक नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., को., वि. १८७५, आदि: श्रीजिन प्रते नमस्का; अंति: कृष्णगढे
सुभ वास, ग्रं. ९००. ५. पे. नाम. पंचमकर्मग्रंथ यंत्र, पृ. ५०अ-९४आ, संपूर्ण.
सप्ततिका कर्मग्रंथ-यंत्र, पंन्या. सुमतिवर्धन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन प्रते नम; अंति: (-). ६२४०७. शुकबहुत्तरी कथा, संपूर्ण, वि. १८०३, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८१, ले.स्थल. सुजालपुर, प्र.ले.श्लो. (६२७) जलात्र रक्षे तैलात् रक्षे, (११२७) जाद्रसं पुस्तकं लिखे, जैदे., (२६.५४१२.५, १७४४१-४५). शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: सयल सुरासुर राया; अंति: चउथो जिनसासन
प्रधान, कथा-७२, गाथा-२४४५. ६२४०८. (+) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १४-२०४३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४
ढाल- १२ अपूर्ण तक है.) ६२४०९. (+) काव्यानुशासन की टीका अलंकारचूडामणि, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८३, ले.स्थल. पाटण,
प्रले. वलभ लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १३४४१).
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