Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 469
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मात ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा सांति जिनेसरु; अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५. ४३१८५. (+) मौनएकादशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. किसी आधुनिक विद्वान द्वारा पेन्सिल से भी संशोधित., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १३४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: विश्वनायक मुगतिदायक; अंति: माणेक० सिवसुख करं, गाथा-१३. ४३१८६. (#) पर्युषणा व सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१२.५, १३४३२). १.पे. नाम. पर्युषणा नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीपजुसण परव; अंति: तणो दीपविजय गुण गाय, गाथा-१२. २. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: पसायथी हंस कहे करजोड, गाथा-१०. ४३१८७. चौवीसजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७.५४१२.५, १३४३६). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरीने भणो नरनारी, गाथा-२७, (वि. इस प्रति में दादा गुरु का नाम नयविमल लिखा है.) ४३१८८. (+) चोवीशजिन सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४४४). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी; अंति: भाव धरिने भणो नरनारी, गाथा-२४. ४३१८९. (#) कालकानो व कलिकुंडपार्श्वनाथ छद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १५४३४). १.पे. नाम. कालकानो छद, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ३, ले.स्थल. भुजपुर, पठ. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ कालिकादेवी स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: करे सेवना ताहरि मात; अंति: श्रुषाली माहादुख, गाथा-८. २.पे. नाम. पद्मावतीदेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकलिकुंडदंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४३१९०. (+#) पोसोलेवानि विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७.५४१३, १४४४७). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम राई पडिकमणो; अंति: अवधी आसातना टालवी. ४३१९१. (+) सामान्यजोगप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४३८). योगप्रवेश विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम त्रण प्रदक्षिन; अंति: तप उपयोग कराववो. ४३१९२. (+#) हेमदंडकद्वार गाथा सह यंत्र, योनिअल्पबहुत्व विचार व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १७४३२). १. पे. नाम. हेमदंडकद्वार गाथा सह यंत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. हेमदंडक, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५, (वि. इस प्रति में कर्तानाम हेमराज लिखा है.) हेमदंडक-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. योनिअल्पबहुत्व विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: सबस थोडा जीवा सीतोसि; अंति: जोणीयां अनंतगुणा. ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोकादि संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. दो श्लोक एवं अंगुलिपर्व तिथि विचार.) For Private and Personal Use Only

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